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________________ ऋषभ अजित सम्भव H अभिनन्दन सुमति पाप्रभ सिंह गज वृषभ इधर प्रातःकाल का प्रथम प्रकाश फूटने के साथ ही प्रियंवदा दासी दौड़ती हुई महाराज सिद्धार्थ के पास आई-"बधाई हो महाराज ! बधाई हो ! महारानी त्रिशला ने पुत्र-रत्न को जन्म दिया है।" हर्ष-उल्लास से पुलकित होकर महाराज ने राजचिह्न को मस्तिष्क पर रखकर बाकी शरीर पर पहने मूल्यवान आभूषण उतारकर प्रियंवदा दासी को उपहार में दे डाले। साथ ही जीवन-भर के लिए उसे दास-कर्म के बंधन से छुटकारा दे दिया। इस प्रकार भाग्यशाली पुत्र के जन्म का शुभ संवाद सुनाने वाली दासी जीवन-भर के लिए दरिद्रता एवं दासता के बन्धनों से मुक्त हो गई। अद्भुत जन्म उत्सव महाराज सिद्धार्थ ने महामात्य को बुलाकर कहा-“नगर के उत्सव आयोजन अधिकारी को कहोराजकुमार के जन्म उत्सव का अपूर्व आयोजन करें।" ___ महाराज की आज्ञा होते ही क्षत्रियकुण्ड नगर की गलियों, राज-पथों आदि की सफाई की गई। सुगन्धित जल छिड़का गया। स्थान-स्थान पर पुष्पमालाएँ, बन्दनवारें टाँगी गईं। घर-घर बधाइयाँ बाँटी गईं। लोग खुशियों से नाचने-गाने लगे। मंगल गीतों की ध्वनियों से क्षत्रियकुण्ड की चारों दिशाएँ गूंजने लगीं। ___ महाराज सिद्धार्थ के मन में एक कल्पना उठी, महामात्य को बुलाकर कहा-“अमात्यवर ! हमारे कुल में पुत्र-जन्म के उत्सव का परम्परागत आयोजन तो हमेशा होता ही है, आज भी होगा, परन्तु आज कुछ नया, कुछ विलक्षण होना चाहिए।" महामात्य ने निवेदन किया-"महाराज ! आप आज्ञा दीजिए, आप जैसा चाहते हैं, वैसा ही होगा ।" महाराज सिद्धार्थ ने कहा-"आज बन्दीगृहों से समस्त बन्दियों को मुक्त कर दो, समस्त कर्जदारों के कर्ज माफ कर दो। जिनके पास आवश्यक सामग्री खरीदने के साधन नहीं हैं, उन्हें वस्तु खरीदने के लिए धन दो। व्यापारियों से कहो अन्न, वस्त्र आदि वस्तुएँ आधे मूल्य में दी जायें। उनका घाटा राजकोष से पूरा कर दिया जायेगा। नगर में जो वृद्ध, अपंग, दरिद्र हैं उन्हें राजकीय दानशालाओं से भोजन, वस्त्र आदि दिये जायें। रोगी तथा वृद्ध दासों को दास्य-कर्म से मुक्त कर दिया जाये। इस प्रकार समस्त नगरवासी आज दरिद्रता, दीनता, क्षुधा एवं बन्धनों की पीड़ा से मुक्त होकर स्वतंत्रतापूर्वक खुशियाँ मनाएँ।" राजा सिद्धार्थ का आदेश क्रियान्वित हुआ। उत्सव अलौकिक उल्लास के साथ दस दिन तक मनाया गया। लोग धन्य-धन्य कह रहे थे-आज संसार को ताप संताप से मुक्ति क्लिाने वाला कोई महापुरुष अवतरित हुआ है। पुत्र के नामकरण की पूर्व बेला में महाराज सिद्धार्थ ने प्रियकारिणी महारानी त्रिशला से विचार-विमर्श करते हुए कहा-“देवी ! जब से यह बालक आपके गर्भ में आया उसी दिन से हमारे कुल में, राज्य के कोषागार में, राजस्व की आय में. हमारी सेना के बल आदि में, राज्य के धन्य भंडार में तथा भवन, वैभव आदि में चतुर्मुखी अभिवृद्धि होती रही है, इसलिए हम इस पुण्यशाली बालक का नाम “वर्द्धमान' रखना चाहते हैं। महारानी त्रिशला ने हर्षित होकर कहा-“महाराज ! आपका विचार यथार्थ है। यह भाग्यशाली बालक सभी प्रकार की अभिवृद्धि करने वाला होगा।" (चित्र M-7) Illustrated Tirthankar Céaritra ( ११४ ) सचित्र तीर्थकर चरित्र लक्ष्मी चन्द्र timediencretion-intermetioner- 10-00 Formentorsurar ostromy www.jainelibrary.org
SR No.002582
Book TitleSachitra Tirthankar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1995
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Story
File Size13 MB
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