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सिंह
गजा
महाराज चेटक की सात पुत्रियाँ थीं१. चेलना-मगध नरेश बिंबसार श्रेणिक की रानी। २. शिवा-अवन्तीपति चण्डप्रद्योत की रानी। ३. मृगावती-कौशाम्बी (वत्स देश) नरेश शतानीक की रानी। ४. पद्मावती-चंपापंति दधिवाहन की रानी (चन्दनबाला की भाता)। ५. प्रभावती-सिन्धु-सौवीर देश के राजा उदायन (उदाई) की रानी। ६. ज्येष्ठा-भगवान महावीर के ज्येष्ठ भ्राता राजकुमार नन्दिवर्धन की रानी। ७. सुज्येष्ठा-बाल ब्रह्मचारिणी। भगवान महावीर की शिष्या बनीं।
जैन एवं बौद्ध साहित्य में प्रसिद्ध वीर पात्र अजातशत्रु (कुणिक) एवं वत्सराज उदायन महाराज चेटक के सगे दौहित्र थे। स्वप्न दर्शन : पूर्वालोक
एक रात माता त्रिशला सुरम्य शयन-कक्ष में, कोमल शय्या पर लेटी हुई अचानक १४ शुभ स्वप्न देखकर जाग्रत हो उठती हैं। उसका अंग-अंग पुलकित प्रफुल्लित रोमांचित-सा हो जाता है। (चित्र M-5)
शय्या त्यागकर त्रिशलादेवी भद्रासन पर बैठ जाती हैं। सोचती हैं-एक साथ इतने दिव्य शुभ स्वप्न !. अहा आज जीवन में पहली बार ऐसे विलक्षण स्वप्न देखे हैं मैंने इनका क्या शुभ फल होगा ? फिर महाराज सिद्धार्थ के शयन-कक्ष में आकर उन्हें शुभ स्वप्न बताये। ___ स्वप्न सुनकर महाराज सिद्धार्थ अत्यन्त प्रफुल्लित हुए। गद्गद् स्वर में बोले-“देवी ! आपके स्वप्न कल्याणकारी हैं। हमें अर्थ-लाभ, भोग-लाभ, सुख-लाभ और पुत्र-लाभ होगा और राज्य की भी वृद्धि होगी। आप भाग्यशालिनी हो, जो एक साथ इतने शुभ स्वप्न देखे हैं। इन शुभ स्वप्नों का अर्थ सूचित करता है-आप जिस पुत्र-रत्न को जन्म दोगी, वह संसार में अति विशिष्ट अद्वितीय व्यक्तित्व वाला होगा। इस धरती पर जितने भी शुभ लक्षण शुभ तत्त्व हैं, उन सबकी संचित निधि के रूप में होगा यह पुत्र-रत्न।
प्रातःकालीन कार्यों से निवृत्त होकर महाराज सिद्धार्थ व देवी त्रिशला सभामण्डप में आकर विराजमान हुए। पास ही छोटे भाई सुपार्श्व, उनकी रानी आदि भी बैठे थे।
वैशाली के प्रसिद्ध स्वप्न-पाठक राजसभा में आये। महाराज सिद्धार्थ एवं देवी त्रिशला ने अष्टांग निमित्त के ज्ञाता स्वप्न-पाठकों का अभिवादन किया। उच्च आसन पर बिठाकर महाराज ने उनसे कहा
वृषभ
लक्ष्मी
पुष्पमाला
१. आचारांग सूत्र तथा कल्पसूत्र आदि ग्रंथों के अनुसार नयसार का जीव प्राणत देवलोक से च्यवकर आषाढ़ शुक्ला षष्ठी के
दिन हस्तोत्तरा नक्षत्र का योग आने पर ऋषभदत्त ब्राह्मण की पत्नी देवानन्दा के गर्भ में अवतरित हुआ तभी देवानन्दा ने उसी रात १४ महान् शुभ स्वप्न देखे, भावी के शुभ संकेतों से उसका रोम-रोम प्रफुल्लित हो गया। किन्तु ८२ दिन बीतने के बाद एक दिन अचानक देवानन्दा की खुशियाँ लुट गई। वे महान् शुभ स्वप्न लौटते दिखाई दिये। उसी रात राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला देवी शुभ साप्न देखती हैं। आगम में उल्लेख है कि शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा से हरिणैगमेषी देव ने माता देवानन्दा का गर्भ, त्रिशलादेवी की कुक्षि में साहरित कर दिया।
-आचारांग सूत्र श्रुतस्कंध २, अ. २४ Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थकर चरित्र
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