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सिंह
गज
वृषभ
भगवान की देशना सुनकर राजा अश्वसेन (पिता) भी संसार से विरक्त हुए और माता महारानी वामादेवी, रानी प्रभावती आदि को भी वैराग्य जगा। सभी ने प्रभु के चरणों में दीक्षा ग्रहण की। उस समय के प्रसिद्ध वेदपाठी विद्वान् शुभदत्त आदि अनेकों विद्वानों एवं राजकुमारों आदि ने भी भगवान की देशना से प्रबुद्ध होकर दीक्षा ग्रहण की। भगवान ने श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी रूप चार तीर्थ की स्थापना की। शुभदत्त प्रथम गणधर बने। भगवान पार्श्वनाथ के धर्मतीर्थ में कुल ८ गणधर हुए।
भगवान पार्श्वनाथ का विहार किन-किन प्रदेशों में हुआ, इसका कोई स्पष्ट उल्लेख तो नहीं मिलता है, परन्तु घटनाओं, सम्बद्ध कथाओं से यह पता चलता है कि काशी-कौशल, नेपाल, बंग, कलिंग, अंग (मगध) आदि पूर्व भारत से लेकर विदर्भ, कोंकण, सौराष्ट्र आदि सुदूर पश्चिम-दक्षिण तक भगवान पार्श्वनाथ का विहार क्षेत्र रहा है। नेपाल की उपत्यका में बसी शाक्यभूमि में भी भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। तथागत बुद्ध के काका शाक्य-नरेश एवं श्रेणिक के पितामह, पिता तथा वैशाली के अनेक राजा आदि भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी होने का उल्लेख मिलता है। २०६ वृद्ध कुमारिकाएँ१
भगवान पार्श्वनाथ के शासनकाल की एक विशिष्ट उल्लेखनीय घटना का वर्णन जैन सूत्रों में मिलता है, जिसका उल्लेख बहुत कम लोगों ने किया है। वह है, उनके शासन में २०६ वृद्ध कुमारिकाओं की दीक्षा। भिन्न-भिन्न नगरों की रहने वाली, जीवन-भर अविवाहित रहकर वृद्धावस्था प्राप्त होने पर अनेक श्रेष्ठी-कन्याओं ने समय-समय पर भगवान पार्श्वनाथ के शासन में दीक्षा ली और तप-संयम की आराधना की। परन्तु उत्तर गुणों में कुछ दोष लगाने के कारण उसकी आलोचना विशुद्धि, किये बिना आयुष्य पूर्ण करके उनमें से चमरेन्द्र. बलीन्द्र, व्यन्तरेन्द्र आदि की अग्रमहिषियाँ (मुख्य रानियाँ) बनीं। उन्होंने भगवान महावीर के समवसरण में सूर 7 देव की तरह अपनी विशिष्ट ऋद्धि-प्रदर्शन के साथ दर्शन किये। जिसे देखकर सामान्य जनता तो क्या, स्वयं गणधर गौतम भी आश्चर्य मुग्ध हो गये। गौतम ने भगवान महावीर से उन देवियों के विषय में जब पूछा तो भगवान महावीर ने यह रहस्योद्घाटन किया कि ये विभिन्न इन्द्रों की अग्रमहिषियाँ हैं, जिन्होंने 'पुरुषादानी' भगवान पार्श्वनाथ के शासन में वृद्ध कुमारिका के रूप में दीक्षित होकर तप-संयम की आराधना की, जिस कारण इनको विशिष्ट देव ऋद्धि प्राप्त हुई।
इन वर्णनों से एक बात स्पष्ट होती है कि भगवान महावीर के युग में भी जन-साधारण में भगवान पार्श्वनाथ के प्रति व्यापक असाधारण श्रद्धा और उनके नाम-स्मरण से लोगों के संकट निवारण एवं कार्य सिद्ध होने का दृढ़ विश्वास व्याप्त था। इसी कारण भगवान महावीर के युग में भगवान पार्श्वनाथ के लिए 'पुरुषादानी' का आदरपूर्ण सम्बोधन प्रचलित था। ___ अनेक विद्वानों का मत है कि भगवान पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म उस समय समग्र भारत में प्रमुख धर्म मार्ग के रूप में मान्यता प्राप्त था। तथागत बुद्ध ने भी पहले इसी चातुर्याम धर्म मार्ग को ग्रहण किया, फिर इसी के आधार पर अष्टांगिक धर्म मार्ग का प्रवर्तन किया।
भगवान पार्श्वनाथ ३0 वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे, तत्पश्चात् ७० वर्ष तक संयममय जीवन जीते हुए श्रावण शुक्ला पंचमी के दिन १०० वर्ष का पूर्ण आयुष्य भोगकर सम्मेदशिखर पर मोक्ष को प्राप्त हुए। १. देखें-निरयावलिका वर्ग ४ के दस देवियों के दस अध्ययन।
-ज्ञातासूत्र श्रुतस्कंध २, वर्ग १ से १० Illustrated Tirthankar Charitra
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सचित्र तीर्थकर चरित्र
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