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पुत्रः' इस उक्तिको चरितार्थ कर रहे है । अपनी छोटी उमरमें ही सम्पूर्ण कार्यभारको सम्भाल कर अपनी दक्षताका परिचय दे रहे हैं।
इस पुस्तकके प्रकाशनमें उदार सहायता देनेवाले दूसरे महानुभाव हैं-पोपटलालभाईके सुपुत्र श्रीचुनीभाई तथा बाबूभाई । जो चोपडावालाके उपनाम से प्रसिद्ध हैं। आप लोगोंने प. पू. उक्त गणिवर्य महाराजके चातुर्मास कालमें अनेक शुभ कार्यों में भाग लिया है। आप लोगोंका शुभ कार्यों में उत्साहका इसीसे पता चल जाता है कि पर्युषणापर्वके अवसर पर आपकी घीकी बोली ने बेंगलोरकी आजतककी धीकी बोलीकी इयत्ता को तोड दिया था ।
तथा वसनजी साँकलचंद महेताकी उदारता तथा सज्जनता का तो यहां सविशेष उल्लेख करना मैं अपना कर्तव्य समभता हूँ । जिनकी सहायता इस पुस्तकके प्रकाशनमें सहजभावसे ही प्राप्त हुई है।
मैं इन तीनों महानुभावोंका हृदयपूर्वक कृतज्ञ हूँ ।
अन्तमें मेरी यह आशा है कि वाचक वर्ग अधिकसे अधिक इस पुस्तकका भी कीर्तिकला सहित द्वात्रिंशिकाद्वयीके जैसा ही उपयोग कर मुझको कृतार्थ करेंगे तथा श्रीवीतरागकी कृपासे स्वयंभी कृतार्थ होंगे इति ।
भवदीयशा. भाईलाल अम्बालाल,
पेटलादवाला ।
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