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का तिरस्कार कर इष्ट नगर में गंतव्य स्थान पर पहुँच गया । इस दृष्टांत का उपनय तीन करण पर इस प्रकार घटित किया गया है । अटवी के समान संसार जानना चाहिए तथा तीन मनुष्य — एक ग्रन्थिदेश से वापस लौटा हुआ, दूसरा ग्रन्थिदेश में और तीसरा ग्रन्थि का भेदन किया हुआ जानना चाहिये । दीर्घपथ रूप कर्म स्थिति जाननी चाहिए, भयस्थान रूप ग्रन्थि जाननी चाहिए तथा दो चोरों के समान राग-द्वेष जानने चाहिये । तत्र स्थित यात्री जो दो चोरों को देखकर भाग गया था उसके समान अभिन्नग्रन्थि - पुनः स्थिति को वृद्धि करने वाला मिथ्यात्वी जानना चाहिए। जिस यात्री को मार्ग में बीच में दो चोरों ने पकड़ लिया — उसके समान ग्रन्थि देश में स्थित जीव अर्थात् राग-द्वेष रूप ग्रन्थि का भेदन करता हुआ जीव जानना चाहिए। जो मार्ग का तय करते हुए गंतव्य नगर में चला गया, उसके समान सम्यक्त्व रूप नगर में पहुँचा हुआ जीव जानना चाहिए। इस प्रकार तीन करण पर यह दृष्टांत घटित किया गया है । जैसा कि विशेषावश्यक भाष्य के टीकाकार आचार्य हेमचन्द्र ने कहा
अथ करणत्रयं गोज्यते - पुरुषत्रयस्य स्वाभाविकगमनं प्रथिदेशप्रापकं यथाप्रवृत्तिकरणम्, शीघ्रगमनेन तस्करातिक्रममपूर्वकरणम् इष्टसम्यक्त्वा दिपुरप्रापकमनिवर्तिकरणमिति ।
- विशेभा० गा० १२१४ टीका
अर्थात् तीन पुरुषों के स्वाभाविक गमन के समान ग्रन्थि देश प्रापक यथाप्रवृत्तिकरण जानना चाहिये अर्थात् इस करण में मिध्यात्वी रागद्वेषात्मक ग्रन्थि के समीप पहुँच जाता है । शीघ्रगमन के द्वारा चोरों के तिरस्कार के समान अपूर्वकरण जानना चाहिए अर्थात् इस करण में ग्रन्थि के भेदन की प्रक्रिया चालू हो जाती है । इष्ट नगर में पहुँच जाना – इसके समान सम्यक्त्व प्राप्ति रूपव्यनिवृत्तिकरण जानना चाहिए । आगे देखिये विशेषावश्यक भाष्य में क्या कहा है
अपुव्वेण तिपुंजं मिच्छत्तं कुणइ कोहवोवमया । अनियट्टीकरणेण उ सो सम्मदंसणं लहइ ॥
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- विशेभा० गा १२१८
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