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________________ [ ३३८ ] (१) अव्यक्त बाल, (२) व्यवहार बाल, (३) दर्शनबाल, (४) बान बाल और (५) चारित्र बाल। तत्त्वार्थ श्रद्धान जिन को नहीं है-ऐसे मियादृष्टि जीव-दर्शन बाल हैं।' दर्शन बाल के संक्षेपतः दो भेद हैं, यथा-इच्छा प्रवृत्त और अनिच्छाप्रवृत्त । कहा है इच्छया प्रवृत्तमनिच्छयेति च। तयोराधमग्निना, धूमेन शस्त्रेण, विषेण, उदकेन, मरुत्प्रपातेन उच्छवासनिरोधेन, अतिशीतोष्णपातेन, रज्वा, क्षुधा, तृषा जिह्वोत्पाटनेन, विरुद्धाहारसेवनया बाला मृति ढोकन्ते, कुतश्चिन्निमित्ताज्जीवितपरित्यागैषिणः काले अकाले वा अध्यवसानादिना यन्मरणं जिजीविषोः सद् द्वितीयं । एतर्बालमरणैदुर्गतिगामिनो म्रियन्ते। विषयव्यासक्तबुद्धयः अज्ञानपटलावगुठिताः, ऋद्धिरससातगुरुकाः। बहुतीव्रपापकर्मास्रवद्वाराण्येतानि बालमरणानि जातिजरामरणव्यसनापादनक्षमाणि ।, -मूलाराधना १ । २५-टीका अर्थात् अग्नि से, धूम से, शस्त्र से, विष से, पानी से, पर्वत पर से कृदने से बवासोच्छास रोकने से, अति शीतोष्ण के पड़ने से, भूख और प्यास से, जिह्वा को उखाड़ने से, प्रकृति के विरुद्ध-आहार का सेवन करने से आदि कारणों से जीवन का त्याग करने की इच्छा से जो मिथ्यात्वी प्राण त्याग करते हैं वे इच्छा प्रवृत्त मरण करने वाले बाल है-योग्यकाल में अथवा अकाल में ही मरने का अभिप्राय धारण न करते हुए भी दर्शन बालों का जो मरण होता है वह अनिच्छा प्रवृत मरण हैं । बौने की इच्छा होते हुए भी वो मरण होता है वह अनिच्छाप्रवृत मरण है। जो दुर्गति को जाने वाले हैं, जिनका चित्त विषयों में आसक्त हैं, जिनके हृदय में अज्ञानांधकार आच्छादित हैं, जो ऋद्धि में आसक्त है, रसों में आसक्त हैं, जो सुख का अभिमान रखते हैं, अर्थात् मैं बड़ा सुखी हूँ, मेरे को अच्छे-अच्छे पदार्थ (१) मिथ्यादृष्टयः सर्वथा तत्त्वश्रद्धानरहिताःदर्शनबाला : -भगवती बाराधना १ । २५ । टीका Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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