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[ ३०४ ] उपयुक्त सद् आचरण मिथ्यात्वी भी कर सकते हैं। सुकृति का बुरा फल नहीं होता है। आचार्य शीलांक ने कहा है
खाइयसम्मदिट्ठी खीणसत्तगो सहावजणियसुहपरिणामो सेणियो इस दट्ठन्यो।
- चउप्पन्नमहापुरिसरियं पृ० १५ अर्थात् श्रेणिक राजा ने शुभ परिणाम से अनंतानुबंधी चतुक तथा मिथ्यात्व मिश्र-सम्यक्त्व-इन सात प्रकृतियों का क्षय कर, मिण्यात्व से निवृत्त होकरक्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त किया। ___भगवान महावीर के जीव ने शबर के भव में साधु के सदुपदेश से मिथ्यात्व से निवृत्त हो सम्यक्त्व को प्राप्त किया ।' सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय शबर के विशुद्ध लेश्या थी। आचार्य पुष्पदन्त ने कहा है
तं णिसुणिवि भुय-दंड - विहूसणु । मुक्कु पुलिंदें महिहि सरासणु ॥ पणविउ मुणि - वरिंदु सब्भावे । तेणाभासिउ णासिय-पावें ॥
-वीरजिणिदचरिउ संघि १, कडवक ३. अर्थात् शबरी की बात को सुनकर सबर ने अपने भुजदंश के भूषण धनुष को भूमि पर पटक दिया और सद्भाव पूर्वक मुनिवर को प्रणाम किया।
मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर शबर ने मानवीय गुणों का नाश करने वाले मधु और मांस के त्याग की प्रतिज्ञा लेली। इस प्रकार वह निरक्षर शबर जीवदया में तत्पर हो गया और जिनधर्म में लग गया। काल व्यतीत होने पर वह यम द्वारा निगला जाकर मरा और सौधर्म स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। (१) स धर्मो मद्यमांसादिपंचोदुम्बरवर्जनः ।
सम्यक्त्वेन ह्यहिंसाधणुव्रतैः पंचभिस्त्वया ॥ गुणवतत्रिक सारैः शिक्षाव्रतचतुष्टयैः । साध्यते गृहिभिश्चैकदेशः स्वर्गसुखप्रदः॥
-वीरवर्धमानचरित्त अधिकार २१ एलो २६।३०.
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