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[ २५६ ] सद क्रिया का आचरण करता है। यहां सद क्रिया अर्थात निर्जरा रूप क्रिया । क्योंकि देवों के प्रत्याख्यान नहीं होते हैं। संवर धर्म की अपेक्षा सब देव अप्रत्याख्यानी है। अप्रत्याख्यान की अपेक्षा वे सब विराधक हैं।
२ (क): मिथ्यात्वी के उदाहरण आगम तथा सिद्धांत ग्रंथों में कहागया है मिष्यावी तप, अहिंसादि के द्वारा आध्यात्मिक विकास करसकते हैं । हम यहाँ पर कतिपय उन मिथ्यात्रियों का उद्धरण देंगे-जिन्होंने अपनी सक्रिया शुभलेश्यादि के द्वारा मिण्यात्व भाव को छोड़ कर सम्यक्त्व प्राप्त की है अथवा मिथ्यात्व अवस्था में शुद्ध क्रिया में शुभगति के आयुष्य का बंधन किया है
सुखविपाक सूत्र में सुबाहु कुमार आदि दस व्यक्तियों का विवेचन किया गया है। उन दसों व्यक्तियो ने अपने पूर्वजन्म में संयति साधु को निर्दोष आहारपानी-खादिम-स्वादिम दान दिया-फलस्वरूप संसार परीत्त कर मनुष्य के आयुष्य का बंधन किया । हम यहाँ सिर्फ सुबाहु कुमार के पूर्व जन्म-समुखगाथापति का उद्धरण देते है ।
"तेण कालेणं, तेणं समएणं, धम्मघोसाण थेराणं अंतेवासी। सुदत्त नाम अणगारे ओराले जाव तेयलेसे, मासंमासेणं खममाणे विहरइ। तते णं से सुदत्ते अणगारे मासखमणपारणगंसि पढमाए पोरसीए समायं करेइ जहा गोयमसामी सहेव 'सुधम्मेथेरे आपुच्छइ जाव अडमाणे सुमुहस्स गाहावइस्स गिहे अण पवितु । ततेां से सुमुहे गाहावई सुदत्त अणगारं एज्जमाणं पासइ पासित्ता हट्ठतुठे आसणाओ अब्भुठेइ अन्मुछेत्ता पायवीढाओ पच्चोरुहति पाउयाओ मुयइ । एगसाडिय उत्तरासंग करेइ करेत्ता, सुदत्त अणगारं सत्तठ्ठपयाई पच्चुगच्छइ पच्चुग्गच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिण करेइ करेत्ता वंदह णमंमइ रत्ता। जेणेव भत्तघरे तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता। सयहत्थेणं विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइम पडिलाभे सामीति तुट ठे३। तत्तणं तस्स सुमुहस्म तेणं दव्वसुद्धणं
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