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[ २५५ ] अशुभ कर्मों का विपाक कट होता है । कालकुमार रथमूसल संग्राम में चेटक राजा के द्वारा मारा गया-वह काल कुमार आरंभ कर यावत अशुभदुष्कृत्व कर नरक में उत्पन्न हुआ। कहा है
काले कुमारे एरिसएहिं आरंभेहिं जाव एरिसरणं अशुभकडकम्मपब्भारेण कालमासे कालं किच्चा चरस्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेमामे नरए नेरइयत्ताए उववन्ने ।
--निरयावलिया वर्ग १। अर्थात् कालकुमार (श्रेणिक राजा का पुत्र ) आरंभ करने से यावत् अशुभ दुष्कृत्य कर्म के भार से भारी होकर काल के अवसर पर कालकर चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में हेमाम नरकावास में नारकी रूप में उत्पन्न हुआ।
यद्यपि मिथ्यात्वी सिद्ध नहीं होते हैं, बीते हुए अन्नतशाश्वत काल मैं मिथ्यात्वी सदाक्रियाओं में सिद्ध नहीं हुआ है। जो कोई जीव कर्मों का अन्त करने वाले और चरम शरीरी हुए हैं, वे सब उत्पन्न बान-दर्शनधारी, अरिहंत, जिन ओर केवली होकर फिर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हुए हैं।
अस्तु मिथ्यात्वी सद् क्रिया से मिथ्यात्व से निवृत्त होकर, सम्यक्त्व ग्रहण कर, तत्पश्चात साधु पर्याय ग्रहणकर, केवल ज्ञान उत्पन्न कर सिद्ध, बुद्ध-मुक्त उसी भव में हो सकता है ।
सिद्धान्त ग्रंथों के अध्ययन से अनुभव हुआ कि अनादि मिथ्यात्वी जीव भी सायिक सम्यक्त्व उसी भव में प्राप्त कर सकते हैं।
देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार को सम्यग दृष्टि की अपेक्षा आराधक कहा है।
सर्णकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धए, नो अभवसिद्धिए । एवं सम्मदिछी, परित्तसंसारिए, सुलभबोहिए, आराहए, चरमे-पसत्थं णेयव्वं ।
-भग० २३ । उ १ । सू ७२, ७३ अर्थात सनत्कुमारेन्द्र भवसिद्धक है, सम्यग्दृष्टि है, परित्त संसारी है, सुलभ बोधि है, आराधक है, परम है। क्योंकि वह सम्यगढष्टि है और
(१) भगवती ११।४।१६.
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