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________________ [ २५३ ] अर्थात हाथो और कुथुए के जीव के अप्रत्याख्यानी क्रिया समान लगती है क्योंकि अविरति की अपेक्षा हाथो और कुथुए के जीव के अप्रत्याख्यानी क्रिया समान लगती है । श्री मज्जयाचार्य ने भ्रमविध्वंसनम् में कहा है “अथ इहा हाथी कुथुआरे अव्रत नी क्रिया बारबार कही । ते अव्रती हाथी आश्री कही। पिण सर्व हाथीआश्री न कही। हाथी तो देशवती पिण छै । ते देशव्रती हाथी थकी तो कुथुआरे अव्रतनी क्रिया घणी । ते माटे इहां हाथी कुथुआ के बरोबर क्रिया कही। ते अवती हाथी आश्री कही । पिण सर्व हाथी आश्री नहीं कही।" भ्रमविध्वंसनम् अधि ५ । १३ । पृ० २१८ शुभकार्यो का फल शुभ होता है। श्रेणिक राजा का पुत्र कालकुमार का पुत्र पद्मकुमार भगवान महावीर की धर्म देशना से प्रभाषित होकर साधु पर्याय ग्रहण की । चारित्र पर्याय का पालन कर सौधम' देवलोक में उत्पन्न हुए। कहा हैतएणं से पउमे अणगारे x ४ सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववन्ने । -कप्पपंडसियाओ वर्ग २४१ अर्थात अणगार पद्मकुमार सद्-क्रियाओं के ( साधु पर्याय ) कारण सौधर्म देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुए। सोमिल ब्राह्मण ने भगवान पार्श्वनाथ की संगति को । प्रश्नोत्तर हुए । समाधान मिला । मिथ्यात्व से निवृत्त होकर सम्यक्स्व को ग्रहण किया-श्रमणोपासक बना। तत्पश्चात् साधुओं के दर्शन के अभाव आदि कारणों से सोमिल सम्यक्त्व को गंवाकर मिथ्यात्वी हो गया । कहा है तएणं से सोमिले माहणे अन्नया कयाइ असाहुदसणेण य पज्जुवासणयाए य मिच्छतपज्जवेहिं परिवडढमाणेहिं २ सम्मत्तपज्जवेहि परिहायमाणेहि मिच्छत्तच पटिवन्ने । -पुफियाओ वर्ग ३ अर्थात् सोमिल ब्राह्मण अन्यदा किसी साधु के दर्शन के अभाव से, आगत साधुओं को सेवा न करने से, मिथ्यात्वियों के संस्थव परिचय से मिथ्यात्व के पर्यव Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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