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________________ [ १५८ ] अर्थात् मल्लीनाथ अरिहंत ने जिस दिन दोक्षा लो, उसी दिन शुभपरिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय, विशुद्धलेश्या से, तदावरणोय कर्मों के क्षय होने से केवलज्ञान तथा केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। ७-जितशत्रु आदि छह प्रमुख राजा मल्लीवरी की पूर्वनिर्मित मूर्ति को देखते हैं, ( उस मूर्ति को साक्षात् मल्लोकवरी समझते हैं। ) देखकर उस पर रागभाव लाते हैं। मल्लोकवरी उस निर्मित मूर्ति का ऊपरी भाग का ढक्कन खोलती है। फलस्वरूप दुर्गन्ध आने लगती है ( क्योंकि उस निर्मित मूर्ति में ठक्कन खोलकर भोजन का ग्रास प्रतिदिन डाला जाता था। कई दिन का ग्रास होने से उसमें दुर्गन्ध आने लगी। ) जितशत्रु प्रमुख उन छहों राजाओं से दुर्गन्ध सहन नहीं हुआ। फलस्वरूप नाक कपड़े से ढक लिया । तब मल्लीकुमारी ने उन छहों राजाओं को प्रतिबोध देते हुए कहा कि इस मूर्ति की की तरह मेरा शरीर भी अशुचि का भंडार है, आप इस ऊपरी चमड़े को देखकर क्यों ललचाते हैं। आप अपने पूर्व भव को याद कीजिये कि अपने सबोंने पूर्वजन्म में एक साथ अनगार वृत्ति में रहे, विचित्र प्रकार की तपस्याएं की। मल्लोकुमारी से यह वृत्तान्त सुनकर उन छहों राजाओं को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ : तए तेसिं जियसत्त पामोक्खाणं छहं रा (या) ईणं मल्लीए विदेहसयवरकन्नए अंतिए एवमळू सोच्चा निसम्मा सुभेणं परिणामेणं पसत्थेणं अज्मवसाणेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरज्जिाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह जाव सण्णिपुव्वे जाईसरणे समुप्पन्ने । -ज्ञातासूत्र अ०८ सू १८१ जिप्तशत्र प्रमुख राजाओं को ( मल्लीकुमारी से विविधप्रकार का उपदेश सुनकर ) शुभपरिणाम, प्रशस्त अध्यवसाय, विशुद्धमान लेश्या से, तदावरणीय कर्म के क्षयोपशम होने से ईहा-ऊपोह-मार्गणा व गवेषणा करते हुए जातिआमरणज्ञान उत्पन्न हुआ। ८-वाणिज्यग्राम वासो सुदर्शन नामक सेठ को सम्यक्त्व अवस्था में जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ : Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002577
Book TitleMithyattvi ka Adhyatmik Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1977
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size14 MB
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