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प्रस्तावना
जैन दर्शन सूक्ष्म और गहन है । 'मिथ्यास्वी का आध्यात्मिक विकास' यह जैन समाज का एक चर्चित विषय है । मैंने प्रस्तुत पुस्तक के नौ अध्याय किये है । प्रत्येक अध्याय में अनेक उप विषय हैं जिनका क्रमवार सप्रमाण विवेचन किया गया है । सन् १९७१-७२ में प्रस्तुत पुस्तक की लेखमाला जैन भारती में क्रमवार कई दिन चली। लेखमाला से प्रभावित होकर कई एक विद्वज्जनों के मेरे पास पत्र आये । उन्होंने लिखा कि क्यों नहीं इसे पुस्तिका रूप में प्रकाशित किया जाय । तभी मैंने संकलन करना प्रारम्भ किया । लेकिन स्व० मोहनलालजो बांठिया के सानिध्य में जैन विश्व भारती लाडनूं, से 'कोश-कार्य' चलने से प्रस्तुत विषय का वेग मन्द पड़ गया । चूँकि स्व० मोहनलालजी बाँठिया जैन विश्व भारती, लाडनूं के कोश सम्पादक थे। जैन दर्शन समिति के मंत्रोंश्री मोहनलालजी बेद, जैन दर्शन समिति के भूतपूर्व सभापति श्री जब्बरमलजी भंडारी स्व० श्री मोहनलालजी बाँटिया का अनुरोध रहा कि आप पुस्तिका पूरी दें । हम जैन दर्शन समिति से प्रकाशित कर देंगे ।
कर
पुस्तिका स्व० श्री मोहनलालजी बाँठिया के समय में ही पूरी हो गई थी । पाठक वर्ग से सभी प्रकार के सुझाव अभिवन्दननीय है। चाहे वे सम्पादन, वर्गीकरण, अनुवाद या अन्य किसी प्रकार के हों। आशा है इस विषय में चिद्वदवर्ग अपने सुझाव भेज कर हमें पूरा सहयोग देंगे ।
'भगवान महावीर जीवन कोश' की हमारी तैयारी अधिकांश हो चुकी है । इसके दो खण्ड होंगे ।
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तेरापंथ संप्रदाय के युगप्रधान बाचार्य तुलसीजी व मुनि श्री नथमलजी को भी इस दिशा में मुझे अनूठी प्रेरणा मिलती रही है जिसे भुलाया नहीं जा
सकता ।
हमारे अनुरोध पर डा० ज्योति प्रसाद जी जैन एम० ए० पी० एच० डी० ने उस पुस्तक पर आमुख लिख कर हमें अनुग्रहित किया -- तदर्थ धम्यवाद |
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