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जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययन निश्चित गुणको नहीं माना गया, अपितु प्रत्येक परमाणुमें दो स्पर्श, एक रस, एक गन्ध और एक वर्ण ये पांच गुण होते हैं। अर्थात् पुद्गलके बीस गुणोंमें से पुद्गल परमाणुमें पांच गुण पाये जाते हैं - पांच रसोंमें से कोई एक रस, पांच वर्षों में से कोई एक वर्ण, दो गन्धोंमें से कोई एक गन्ध तथा शीत-स्निग्ध, शीत-रूक्ष, उष्ण-स्निग्ध, उष्ण-रुक्ष इन चार स्पर्श युगलों में से कोई एक युगल होता है।
परमाणमें इन गुणोंके अतिरिक्त एक अन्य गुण भी माना जाता है. वह है परमाणुओंका सक्रियत्व । जैन दर्शनके अनुसार परमाणु निष्क्रिय नहीं होते, क्योंकि जैन मान्य षट् द्रव्यों में से जीव और पुद्गल इन दोनों द्रव्यों को क्रियावन्त माना गया है। पुद्गलकी क्रिया में सहकारी कारण काल होता है । कालका कभी भी अभाव संभव नहीं होता, इसी कारण पुद्गल निष्क्रिय कभी भी नहीं होता।' इस परिवर्तनशीलता के कारण परमाणुके स्पर्शादि चारों गुणोंमें कुछ न कुछ तारतम्य स्वत: आता ही रहता है,' इसी तारतम्यताके कारण परमाणुओंका परस्पर बन्ध होता है। ११. अन्य दर्शनों से तुलना
बौद्ध दर्शनमें भी परमाणुओंकी गतिशीलताके सिद्धान्तको माना गया है, परन्तु गतिशीलताके कारण परमाणुको शाश्वत नहीं माना । जैन दर्शनानुसार परमाणु गतिशील होते हुए भी शाश्वत हैं क्योंकि किसी भी कालमें और किसी भी शस्त्र, अग्नि, जल आदिके निमित्तसे परमाणुका विनाश संभव नहीं है। इस प्रकार जैन मान्य इस सिद्धान्तसे परमाणुओंके बौद्धमान्य सिद्धान्तका खण्डन हो जाता है।
वैशेषिक दर्शनमें यद्यपि परमाणुओंकी गतिशीलताके सिद्धान्तको स्वीकार किया गया है, परन्तु परमाणु स्वयं गतिशील नहीं होते। वैशेषिकके मतानुसार १. एयरसवण्णगंध दो फासंसदकारणमसदं ।
खंधंतरिदंद्रव्वं परमाणुं तं वियाणेहि ॥ पंचास्तिकाय, गाथा ८१ २. पंचास्तिकाय, तत्त्वप्रदीपिका, गाथा ८१ ३. जीवा पुग्गलकाया सह सक्किरिया हवंतिण ये सेसा।
पग्गलकरणा जीवाखंधा खलकाल करणा द॥ पंचास्तिकाय.गाथा ९८ ४. पुद्गलानां सक्रियत्वस्य बहिरंगसाधनं परिणामनिर्वर्तक: काल: न च कर्मादीनामिव कालस्याभावः।
पंचास्तिकाय, तत्त्वप्रदीपिका, गाथा ९८ ५. पदार्थ विज्ञान, पष्ठ १९० ६. JamesHastings, Encyclopaedia of Religion and Ethics, Vol.111959,P.201 ७. पूर्व निर्दिष्ट - परमाणु शाश्वत है।
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