SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ E0 जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययन “बन्धो वक्ष्यते तं परिप्राप्ता: ये अणव: ते स्कन्धा:"१ जितनी भी प्रत्यक्ष योग्य वस्तुएं हैं, वे सब यौगिक या स्कन्ध ही कहलाती हैं। एक स्थूल स्कन्धके भेदनसे दो या अधिक क्षुद्र स्कन्धों की उत्पत्ति होती है और दो या अधिक परमाणुओंके संघात अर्थात् मेल से भी स्थूल सूक्ष्म स्कन्धोंकी उत्पत्ति होती है । उमास्वामीने सूत्रमें कहा है - “भेद संघातेभ्य: उत्पद्यन्ते । २ नेमिचन्द्राचार्यने पुद्गल द्रव्यके प्रमुख छह भेदोंका निर्देशन किया है. बादरबादर, बादर, बादरसूक्ष्म, सूक्ष्मबादर, सूक्ष्म और सूक्ष्मसूक्ष्म । इनके द्वारा पुद्गलके स्थूलतमसे लेकर सूक्ष्मतम तक सभी रूपोंका दिग्दर्शन हो जाता है। कुन्दकुन्दाचार्यने पुद्गलद्रव्यको चार प्रकारका कहा है - स्कन्ध, स्कन्ध देश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणु ।' समस्त परमाणुओंका एक पिण्ड रूप पुद्गल, “स्कन्ध कहलाता है। उस पुद्गल स्कन्धका अर्ध भाग *स्कन्ध देश कहलाता है । स्कन्धदेशका अर्धभाग "स्कन्ध प्रदेश" कहलाता है और जिसका विभाग न हो सके उसे परमाणु कहते हैं। इस प्रकार दो परमाणुओंके मिलापसे लेकर सकल पृथ्वी-खण्ड पर्यन्त स्कन्धोंके अनन्त भेद भी कहे जा सकते हैं। नियमसारमें भी गोम्मटसारके समान ही स्थूलता और सूक्ष्मताके आधार पर पुद्गल द्रव्यके छह भेदोंका कथन किया गया है, यद्यपि उपरोक्त चार भेदों में सभी भेद गर्भित हो जाते हैं, परन्तु पुद्गल द्रव्यके स्थूलतमसे लेकर सूक्ष्मतम तक सभी रूपोंका स्पष्ट परिचय इन छह भेदोंके द्वारा ही प्राप्त होता है। पुद्गल स्कन्ध का वह स्थूलतम रूप, जो खण्डित किया जानेपर पुन: अपने आप न मिल सके "बादरबादर" कहलाता है । पृथ्वी जातीय पाषाणादि पदार्थ “बादर बादर" हैं, इनका छेदन भेदन किया जा सकता है और इन्हें एक स्थानसे दूसरे स्थानपर ले जाया जा सकता है। १. राजवार्तिक, पृ०४९३ २. तत्त्वार्थ, सूत्र, अध्याय ५, सूत्र २६ ३. बादर-बादर बादर बादर-सुहमंच सुहमथूलं च। सुहुमं च सुहमसुहमं धरादिर्य होदि छब्भेयं ॥ गोम्मटसार जीव काण्ड, गाथा ६०३ ४. खंधा य खंधदेसा खंधपदेसा य होंति परमाणु। इति तेचदुवियप्पा पुग्गलकाया मुणेयव्वा ।। पंचास्तिकाय, गाथा ७४ ५. (क) गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा ६०४ (ख) पंचास्तिकाय, गाथा ७५ ६. नियमसार, गाथा २१ ७. भूपब्बदमादिया भणिदा अइथूल)लमिदि खंधा, नियमसार, गाथा २२. Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy