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पुद्गल द्रव्य और पुद्गल की सूक्ष्म स्थूल अवस्थायें
५५ मूर्तत्वका स्पष्टीकरण करते हुए पूज्यपादजी ने कहा है - कर्मसे निर्मित शरीरको जैन दर्शनमें कार्मण शरीर कहा है । कार्मण शरीरका संबंध जिस समय इष्ट रूप गुड़ादि मूर्तिमान पदार्थों से होता है, उस समय उनसे सुख रूपमूर्त फलकी प्राप्ति होती है और जिस समय अनिष्ट रूप कांटे आदि मूर्तिमान पदार्थों से संबंध होता है, उस समय दु:ख रूप मूर्त फलकी प्राप्त होती है। इससे सिद्ध होता है कि कर्म पौद्गलिक हैं और पुद्गलके मूर्तत्व गुणके कारण कर्म भी मूर्तिक हैं । कर्मसे निर्मित सूक्ष्म शरीरके द्वारा अन्य स्थूल शरीरोंका निर्माण होता है जो साक्षात् मूर्तिक दृष्टिगोचर होते हैं। ५. पुद्गल अचेतन द्रव्य है
पुद्गल में चेतना का अभाव होता है, इसलिए पुद्गल द्रव्य अचेतन है । अपनेको प्रकाशित करने की सामर्थ्य को चेतनत्व कहते है । पुद्गलमें स्वयं को प्रकाशित करनेकी सामर्थ्य नहीं होती, इसीलिए पुद्गलके विशेष गुणों में अचेतनत्वकी गणना की गई है । अचेतनत्वके कारण पुद्गलमें स्वंय अनुभवकी शक्ति नहीं होती, परन्तु वह अन्य चेतन द्रव्यके अनुभवका विषय हो जाता है।
जैन मान्य पुद्गलके अचेतनत्व गुणकी तुलना, सांख्य मान्य प्रकृतिके जड़त्वसे की जा सकती है, क्योंकि सांख्य दर्शनमें भी प्रकृतिको चेतना रहित और विषयके रूपमें माना गया है। इस प्रकार पुद्गलको अचेतन और विषयके रूपमें माननेका सिद्धान्त जैन दर्शन और सांख्य दर्शनमें समान है । परन्तु चार्वाक् दर्शनसे यह सिद्धान्त भिन्नता रखता है। भौतिकवादी दर्शनोंमें चार्वाक दर्शनका प्रथम स्थान है । चार्वाक दर्शनमें जैन मान्य पुद्गलके सिद्धान्तके समान ही पंचभूतों की सत्ताको वास्तविक अवश्य माना है, परन्तु उन्होंने इन पंचभूतोंसे चेतनाकी उत्पत्ति मानी है, इसी कारण चार्वाक भौतिकवाद जैन मान्य पुद्गलवादके विपरीत हो जाता है, क्योंकि जैन दर्शनके अनुसार पुद्गल एक अचेतन द्रव्यके रूपमें माना गया है। ६. पुद्गल द्रव्यकी पर्यायें
नेमिचन्द्राचार्य ने पुद्गल द्रव्य की दसविध पर्यायोंका निर्देशन किया है
१. सर्वार्थसिद्धि , पृ० २८५ २. “अचेतनस्य भावो अचेतनत्वमचैतन्यमननुभवनम्” आलाप पद्धति, पृ० ९२ ३. सांख्य कारिका, न०११ ४. “चतुर्थ्य: खलु भूतेभ्यश्चैतन्यमुपजायते" सर्वदर्शन संग्रह, १०७
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