________________
.४४
जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययन (ख) इन्द्रियों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण__इन्द्रियों की अपेक्षा संसारी जीवों को पांच प्रकार का कहा गया है। शरीर धारी जीवों में जानने के साधन के रूप में पांच इन्द्रियाँ होती हैं, परन्तु सभी जीव पाँचों इन्द्रियों को धारण करने वाले नहीं होते। कर्मों की न्यूनाधिक प्रगाढतावश संसारी जीव केवल एक, दो, तीन या चार इन्द्रियों को भी धारण करते हैं ।
पाँच इन्द्रियाँ - स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र होती हैं, इन इन्द्रियों को सांख्य दर्शन में बुद्धिइन्द्रियाँ या ज्ञानेन्द्रियाँ कहा जाता है।
एकेन्द्रिय जीवों में केवल एक स्पर्शन शक्ति पायी जाती है । पृथ्वी, अप, तेज, वायु, और वनस्पति कायिक जीव एकेन्द्रिय ही होते हैं।'
. स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों वाले जीवों को द्वीन्द्रिय कहते हैं । जैसे कृमि, लद् आदि। इन जीवों में शेष तीन इन्द्रियों पर आवरण होता है, इसी कारण इनमें घाण, चक्षु और श्रोत्र इन्द्रियों का अभाव होता है ।
स्पर्शन, रसना और घ्राण, इन तीन इन्द्रियों वाले जीवों को त्रीन्द्रिय कहते हैं। जैसे जू, खटमल, चींटी आदि। इनमें चक्षु और श्रोत्र इन्द्रियों पर आवरण होता है, इसी कारण इन दो इन्द्रियों का अभाव होता है।
स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु इन चार इन्द्रियों वाले जीवों को चतुरिन्द्रिय कहते हैं। जैसे मक्खी , मच्छर, मधुमक्खी , भंवरे, पतंगे आदि। इनमें श्रोत्र इन्द्रिय का अभाव माना जाता है, क्योंकि आवरण कर्म का उदय होता है।
स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र इन पांचों इन्द्रियों वाले जीवों को पंचेन्द्रिय कहते हैं, देव, मनुष्य, नारकी और कुछ तिर्यञ्च गति के जीव पंचेन्द्रिय होते हैं।
१. पंचेन्द्रियाणि, तत्त्वार्यसूत्र, अध्याय २, सूत्र १५ २. स्पर्शनरसनाघ्राणचक्षुः श्रोत्राणि, तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय २, सूत्र १९ ३. सांख्यकारिका, २६ ४. पंचास्तिकाय, गाथा ११० ५. पंचास्तिकाय, गाथा ११४ ६. पंचास्तिकाय,गाथा ११५ ७. पंचास्तिकाय, गाथा ११६ ८. पंचास्तिकाय. गाथा ११७
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org