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________________ ४० जैन दर्शन में कर्म-सिद्धान्त-एक अध्ययन है । संसारी जीवोंको कर्ता इसलिये माना गया है, क्योंकि वह अपने कर्मों के निमित्तसे सूक्ष्म और स्थूल शरीरोंका निर्माण करता है, सूक्ष्म शरीरोंका निर्माण करनेमें, यद्यपि उपादान कारण पुद्गल है, परन्तु निमित्त कारण जीवको ही माना गया है। कर्मसे लिप्त जीव, जिस प्रकार विभिन्न कर्मों का कर्ता है, उसी प्रकार सुख:दुख रूप पुद्गल कर्मफलोंका भोक्ता भी है। कर्मसे मुक्त जीवका कर्ता और भोक्ता मानना, जैन दर्शनकी एक विशिष्टता है। कर्मसे मुक्त होनेपर भी वह क्या करता है और क्या भोगता है, इसका उत्तर 'देते हुए नेमिचन्द्राचार्य ने कहा है कि शुद्ध जीव अपने अनन्तज्ञानादि भावों का कर्ता है,३ अनन्तज्ञानादि भावों से तन्मयता के कारण परम आनन्द रूप सुखामृत का भोक्ता है। ' आत्माको कर्त्ता माननेका यह सिद्धान्त, सांख्य दर्शनके विपरीत है, क्योंकि सांख्यमें पुरुषको अकर्ता कहा गया है और भोक्ता माननेका यह सिद्धान्त, बौद्धोंके क्षणिकवादका खण्डन करता है।" ५. जीव देह परिमाण है - कर्मों के निमित्तसे जीवको छोटा या बड़ा जैसा भी शरीर प्राप्त होता है, जीव उसमें उतनी ही अवगाहनाका हो कर रहता है, इसीलिये जीवको “अणुगुरुदेहपमाणो”६ कहा गया है । पूज्यपादजीने भी जीवके देह परिमाणत्वको स्वीकार करते हुए कहा है – “शरीरमणुमहद्वाधितिष्ठंस्तावदवगाह्य जीव छोटे शरीरमें छोटा और बड़े शरीरमें बड़ा कैसे हो जाता है ? इस प्रश्नका जैन दर्शनमें बहुत स्पष्ट रीतिसे वर्णन प्राप्त होता है। उमास्वामीने इसका कारण दर्शाते हुए कहा है - “प्रदेशसंहारविसर्पाभ्यां प्रदीपवत्"८ जैसे दीपकका प्रकाश छोटे स्थानपर संकुचित हो जाता है और बड़े स्थानपर विस्तृत हो जाता १. “पुग्गलकम्मादीणं कत्ता ववहारदो”, द्रव्यसंग्रह गाथा ८. २. “ववहारा सुहदुक्खं पुग्गलकम्मफलं पमुंजादि” द्रव्यसंग्रह, गाथा ९ ३. द्रव्य संग्रह, गाथा ८ ४. द्रव्य संग्रह, ब्रह्मदेव टीका, गाथा ८ ५. जैन एथिक्स, पृ० ४२ ६. द्रव्यसंग्रह, गाथा १० ७. सर्वार्थसिद्धि, पृ० २७४ ८. तत्त्वार्थ सूत्र, अध्याय, ४, सूत्र १६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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