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वस्तु स्वभाव
___ अत: जैन दर्शनके अनुसार जीवकी भाँति पुदगलोंका अस्तित्व भी अनादि है, इनका नाश तो नहीं किया जा सकता, परन्तु आत्मा पर छायी कर्म रूप अवस्थाका विनाश अवश्य किया जा सकता है । ६. वस्तुके असाधारण या विशेष गुण
जैन दर्शनके अनुसार वस्तुको षद् द्रव्योंके समूह रूप माना गया है । पद्रव्योंके पृथक्-पृथक् विशेष गुणोंको ही वस्तुके असाधारण या विशेष गुण कहा जाता है । असाधारण कहे जाने वाले गुण अपने-अपने द्रव्य की अपेक्षा साधारण होने पर भी भिन्न द्रव्य, अथवा द्रव्य समूहकी अपेक्षा असाधारण ही हैं। जैसे ज्ञान, सुखादि सर्वजीवोंमें सामान्य रूपसे पाये जाने के कारण जीव द्रव्य के प्रति साधारण हैं और द्रव्यों अथवा द्रव्य समूह में न पाये जानेसे उनके प्रति असाधारण हैं। प्रस्तुत प्रकरण में सामान्य रूपसे वस्तुका कथन है, इसी कारण वस्तु की अपेक्षा ये विशेष या असाधारण ही होते हैं।
समस्त असाधारण गुण संख्यामें सोलह होते हैं - ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, गतिहेतुत्व, स्थिति हेतुत्व, अवगाहन हेतुत्व, वर्तनाहेतुत्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्तत्व, अमूर्तत्व। इनमें से भावस्वरूप गुणों को अनुजीवी गुण कहते हैं, जैसे ज्ञान, दर्शन, सुखादि और अभाव स्वरूप गुणों को प्रतिजीवी गुण कहते हैं जैसे अचेतनत्व आदि । आगे पृथक्-पृथक् द्रव्य की दृष्टिसे उपरोक्त असाधारण गुणोंका विवेचन इष्ट है - (क) जीव द्रव्य के असाधारण गुण
जीव द्रव्य में षट् विशेष गुण माने गये हैं - आलाप पद्धति में कहा गया है - “जीवस्य ज्ञानदर्शनसुखवीर्याणि चेतनत्वममूर्तत्वमिति षट्""
ज्ञान जीव का एक विशेष गुण है, जो स्व तथा पर दोनों को जानने में समर्थ है।' निर्विकल्प रूप से पदार्थों को ग्रहण करने की शक्तिको दर्शन कहते हैं।' आह्लाद या आनन्दका नाम सुख है। द्रव्यकी अपनी शक्ति विशेषको वीर्य कहते __ज्ञानसुखादय: स्वजातौ साधारणा अपि विजातोपुनरसाधारणा:
योगेन्दुदेव परमात्मप्रकाश, विक्र.सं.२०१७, पृ.५८ २. आलाप पद्धति, पृ० ३२ ३. जैन सिद्धान्त प्रवेशिका, पृ०४२ ४. आलाप पद्धति, पृ० ३२
जिनेन्द्र वर्णी, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, १९७१, भाग २, पृ० २५५ ६. पंचसंग्रह, गाथा, १३८ ७. 'सुखमालादनाकारम्' अकलंकभट्ट, न्यायविनिश्चय, अधिकार १, पृ०४२८
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