SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वस्तु स्वभाव १५ साम्यतारखती है। उमास्वामी ने कहा है - "गुणपर्यायवद् - द्रव्यम्' अर्थात् गुण और पर्याय वाला द्रव्य है। इस प्रकार दोनों परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि जैन मान्य वस्तु और द्रव्य एक ही अर्थ के द्योतक हैं। जिस प्रकार अग्निका उष्णत्व से और जलका शीतत्व से पृथक् अस्तित्व नहीं होता, उसी प्रकार गुण तथा पर्यायों से युक्त वस्तुका अपने गुण तथा पर्यायोंसे पृथक् अस्तित्व नहीं होता। २. अन्य वर्शनों में सत्ता का स्वरूप वेदान्त के अनुसार जो सत् है वह कभी परिवर्तित नहीं हो सकता इसीलिये ब्रह्म ही एक परमसत् है, जगत् केवल एक आभास मात्र है। शंकराचार्य की सम्पूर्ण धारणा विवर्त के सिद्धान्त पर आधारित है, जिसके अनुसार जैसे अज्ञान के कारण रस्सी में सर्प का बोध होता है, उसी प्रकार अज्ञानके कारण जगत् में अनेकत्व दष्टिगोचर होता है । यथार्थमें ब्रह्म ही एक मात्र वास्तविक सत्ता है अन्य कुछ नहीं। - बौद्धदर्शनका दृष्टिकोण वेदान्तसे पूर्णत: विपरीत है । बौद्धमत के अनुसार कोई भी वस्तु नित्य नहीं है। प्रत्येक वस्तु अपने उत्पन्न होने के दूसरे क्षणमें ही नष्ट हो जाती है, क्योंकि नष्ट होना पदार्थों का स्वभाव है । कूटस्थ नित्य वस्तु में अर्थक्रिया नहीं हो सकती, और वस्तुमें अर्थक्रिया न होनेसे उसे सत् भी नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार बौद्धमतमें क्षण स्थायी सत्ताको ही यथार्थ माना गया . सांख्य दर्शन में नित्य और अनित्य दोनों सत्ताओं को पुरूष और प्रकृति के रूप में स्वीकार किया गया है। पुरूष नित्य, स्थिर और चेतन तत्त्व का द्योतक है और प्रकृति अनित्य, अस्थिर और अचेतन तत्त्व की द्योतक है । इस प्रकार सांख्य दर्शन में कूटस्थ, नित्य और परिवर्तनशील दोनों सत्ताओं को स्वीकार किया गया है।' न्यायवैशेषिक दर्शनमें भी सत्ता के द्वैतको स्वीकार किया गया है। विश्व का निर्माण विभिन्न प्रकारके परमाणुओं और जीवात्माओं के सहयोगसे होता है।' १. उमास्वामी, तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय ५, सूत्र ३७ २. जगद्विलक्षण ब्रह्म ब्रह्मणोऽन्यत्र न किंचन, शंकराचार्य, आत्मबोध सूत्र ६३ ३. सिन्हा हरेन्द्र, भारतीय दर्शन की रूपरेखा, १९८०, पृ० १०५ १. सांख्य कारिका, ११.१ ५. सिन्हा हरेन्द्र, भारतीय दर्शन की रूपरेखा, पृ०२१० Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy