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(XV)
२. विभिन्न दर्शनों में मुक्ति के मार्ग का स्वरूप- (क) बौद्ध दर्शन में मुक्ति का मार्ग (ख) सांख्य दर्शन में मुक्ति का मार्ग (ग) योग दर्शन में मुक्ति का मार्ग (घ) न्यायवैशेषिक दर्शन में मुक्ति का मार्ग (ड) मीमांसा दर्शन में मुक्ति का मार्ग (च) वेदान्त दर्शन में मुक्ति का मार्ग (छ) जैन दर्शन में मुक्ति का मार्ग ३. कर्म प्रवाह को रोकने का उपाय- संवर- (क) परिचय (ख) संवर के भेद (ग) संवर के साधन की तालिका (१) व्रत (२) गुप्ति (३) समिति (४) धर्म (५) अनुप्रेक्षा- • अनुप्रेक्षाओं का महत्त्व (६) परीषह जय - लक्षण, भेद, परीषहों के कारण भूतकर्म, गुणस्थानों में परीषह व्यवस्था, (७) चारित्र - चारित्र का महत्त्व ४. पूर्व बद्ध कर्मों की निवृत्ति का मार्ग निर्जरा
(क.) निर्जरा का लक्षण (ख.) निर्जरा के भेद (ग.) निर्जरा में तप की प्रधानता (घ) तप के भेद - बाह्य तप, आभ्यन्तर तप
५. पंच लब्धि - (१) क्षयोपशमलब्धि (२) विशुद्धि लब्धि (३) देशना लब्धि (४) प्रायोग्य लब्धि (५) करण लब्धि - त्रिकरण - (क) अध:करण (ख) अपूर्व करण (ग) अनिवृत्तिकरण (घ) ग्रन्थि भेद के द्विविध रूप, ६. निष्कर्ष सप्तम् अध्याय - कर्म मुक्ति के विविध सोपान गुणस्थान व्यवस्था - १९१-२२३
१. सामान्य अवलोकन
२. त्रिविध आत्मा - बहिरात्मा, अन्तरात्मा, परमात्मा
१. मिथ्यादृष्टि गुणस्थान
३. मिश्र गुणस्थान (सम्यक् मिथ्यादृष्टि)
४. असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान- त्रिविध सम्यग्दृष्टि - (क.) औपशमिक (ख.) क्षायिक (ग.) क्षायोपशमिक
५. संयतासंयत गुणस्थान
७. अप्रमत्त संयतगुणस्थान
९. अनिवृत्तिकरण गुणस्थान
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२. सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान
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६. प्रमत्त संयत गुणस्थान
८. अपूर्व करण गुणस्थान
१०. सूक्ष्मसम्पराय गुणस्थान
११. उपशान्त कषाय वीतराग छद्मस्थ गुणस्थान
१२. क्षीण कषाय वीतरागछद्मस्थ गुणस्थान
१३. सयोग केवली गुणस्थान - विभिन्न दर्शनों में जीवनमुक्ति (क.) उपनिषद में जीवनमुक्ति (ख) गीता में जीवनमुक्ति (ग.) बौद्ध दर्शन में जीवन मुक्ति (घ) न्याय वैशेषिक में जीवन मुक्ति (ड.) सांख्य दर्शन में
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