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________________ (XII १. उपनिषदोंमें कर्मबन्ध के कारण २. बौद्धदर्शन में कर्म बन्ध के कारण ३. न्याय वैशेषिक में कर्म बन्ध के कारण ४. मीमांसा दर्शन में कर्मबन्ध के कारण ५. वेदान्त में कर्मबन्ध के कारण ६. सांख्य दर्शन में कर्मबन्ध के कारण ७. योग दर्शन में कर्मबन्ध के कारण ८. जैन दर्शन में कर्मबन्ध के कारण[(१) मिथ्यात्व (२) अविरति (३) प्रमाद (४) कषाय (५) योग] कर्मबन्ध के भेद-प्रभेद-प्रकृति संबंधी एकत्र परिगणन तालिका (१) प्रकृति बन्ध-(१) ज्ञानावरणीय कर्म-ज्ञानावरणीय प्रकृति बन्ध के कारण, ज्ञानावरणीय कर्म की मूलोत्तर प्रकृतियों, मतिज्ञानावरण - अवग्रह मतिज्ञान, ईहामतिज्ञान, अवाय मतिज्ञान, धारणा मतिज्ञान; मतिज्ञानावरणीय की अट्ठाईस भेदों की तालिका, श्रुतज्ञानावरणीय, अवधिज्ञानावरणीय, मन:पर्ययज्ञानावरणीय, केवलज्ञानावरणीय (२) दर्शनावरणीय कर्म- दर्शनावरणीय प्रकृति बन्ध के कारण, दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधि दर्शनावरण, केवल दर्शनावरण, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि (३) वेदनीय कर्म-वेदनीय कर्म के बन्ध के कारण, वेदनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ (8) मोहनीय कर्म-मोहनीय कर्म के बन्ध के कारण, मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ, वर्शन मोहनीय कर्म, चारित्र मोहनीय कर्म, चारित्र मोहनीय कर्म के भेद प्रभेद - कषाय मोहनीय-क्रोध चतुष्क, मान चतुष्क, माया चतुष्क, लोभ चतुष्क, शक्तियों के दृष्टान्त, नोकषाय मोहनीय, हास्य, रति,अरति,शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद (५) आयु कर्म-आयु के भेद और बन्ध के कारण (६) नाम कर्म- नाम कर्म के बन्ध के कारण, नाम कर्म के भेद-पिण्ड प्रकृतियाँ, प्रत्येक प्रकृतियाँ, बस दशक, स्थावर दशक; (७) गोत्र कर्म-गोत्र कर्म के भेद वबन्ध के कारण (८) अन्तराय कर्म-अन्तराय कर्म के भेद व बन्ध के कारण (२) स्थिति बन्ध-गणित परिचय, समस्त कर्मों की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति और उत्कृष्ट तथा जघन्य आबाधा काल की सारिणी। (३) अनुभाग बन्ध- प्रकृतियों में अनुभाग बन्ध, घातिया-अघातिया कर्म निर्देश, घातिया-अघातिया कर्म प्रकृतियों की तालिका, विपाक की अपेक्षा कर्म प्रकृतियों की तालिका, पुण्य और पाप प्रकृतियाँ, पुण्य और पाप प्रकृतियों की तालिका (४) प्रदेशबन्ध (३) निष्कर्ष षष्ट अध्याय- कर्म मुक्ति का मार्ग संवर-निर्जरा १६१-१९० १. कर्मों की अनादिकालीन परम्परामें पुरुषार्थ का सार्थक्य Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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