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________________ कममुक्ति कामागसंवर निर्जरा १६७ संवर 10 व्रत गुप्ति मन तृषा १ अहिंसा २सत्य ३अस्तेय ४ ब्रह्मचर्य ५अपरिग्रह काय समिति धर्म अनुप्रेक्षा परिषहजय चारित्र (३) (५) (१०) (१२) (२२) (५) =६२ ईर्या क्षमा अनित्य क्षुधा सामायिक वचन भाषा मार्दव अशरण छेदोपस्थापना ऐषणा आर्जव संसार शीत् परिहारविशुद्धि आदान निक्षेपण सत्य एकत्व उष्ण सूक्ष्मसांपराय उत्सर्ग शौच अन्यत्व दंशमशक यथाख्यात संयम अशुचि नग्नत्व आश्रव अरति त्याग संवर अकिंचन्य निर्जरा चर्या ब्रह्मचर्य लोक निषधा शय्या धर्मस्वाख्यातत्व आक्रोश तप वध याचना अलाम रोग तृणस्पर्श मल सत्कार पुरस्कार प्रज्ञा अज्ञान अदर्शन १. व्रत "हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम्” अर्थात् हिंसा, असत्य, चोरी, कुशील और परिग्रहसे निवृत्त होना व्रत है । इनसे एक देश रूपसे निवृत्त होना अणुव्रत कहलाता है और सर्वदेश निवृत्ति को महाव्रत कहते हैं । प्राणियों की हिंसा न करना अहिंसावत है, झूठ न बोलना सत्यव्रत है, बिना दिये दूसरेकी वस्तु ग्रहण न करना अस्तेयव्रत है, मैथुन प्रवृत्तिका त्याग करना, ब्रह्मचर्य है और पदार्थों को आसक्ति पूर्वक ग्रहण न करना अपरिग्रहव्रत है।' १. तत्त्वार्थस्त्र. अध्याय ७. सत्र १. २. ८-१२ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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