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कर्ममुक्ति का मार्ग संवर निर्जरा
ख. सांख्य दर्शनमें मुक्तिका मार्ग
सांख्य दर्शनमें पुरूष और प्रकृतिमें विभिन्नताका बोधकराने वाले सम्यग्ज्ञानको ही मुक्तिमार्गका प्रदर्शक माना गया है, क्योंकि तत्त्वज्ञानके होने से पुरूष प्रेक्षककी तरह तटस्थ भावसे प्रकृतिको देखता है ।' हरेन्द्र सिन्हाके अनुसार सांख्य मतमें कर्मको दुःखात्मक माना गया है। दुःखात्मक कर्मके द्वारा मोक्षकी प्राप्ति संभव नहीं हो सकती। इसके विपरीत ज्ञान, जाग्रत अनुभवकी तरह यथार्थ होता है, इसीलिए सम्यक्ज्ञान से ही मोक्षकी प्राप्ति होती है ।
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योग दर्शनमें मोक्षका मार्ग
योग दर्शनमें निम्न अष्टांग मार्गके द्वारा मुक्तिपथका निर्देशन किया गया है - १. यम २. नियम ३. आसन ४. प्राणायाम ५. प्रत्याहार ६. धारणा ७. ध्यान और ८. समाधि । अहिंसा, असत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के भेदसे यम पांच प्रकार का है, यम जैन मान्य पंच व्रतोंके समान ही है। शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान ये पांच नियम कहे गये हैं, शेष छह मार्ग प्राणवायुपर नियंत्रण करने, बाह्य विषयोंसे इन्द्रियोंको हटाने, ध्यानकी निरन्तरता और पूर्ण लवलीनताके सूचक हैं ।
न्यायवैशेषिक दर्शनमें मोक्षका मार्ग
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अपवर्गकी प्राप्तिका क्रम निर्देशन करते हुए न्यायसूत्रमें कहा गया है। “दु:ख जन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानम् उत्तरोत्तरापाये तदनन्तरापायाद अपवर्ग"" मिथ्याज्ञानकी निवृत्ति तत्त्वज्ञानसे होती है, तत्त्वज्ञान होने से साधकको विषयों में दोष दिखाई देने लगता है, जिससे वह मोक्ष प्राप्तिके साधनोंमें प्रवृत्ति करने लगता है । आत्मसाधना में प्रवृत्ति करने से क्रियमाण, संचित और प्रारब्धकर्मों का नाश हो जाता है और जन्म परम्पराका नाश करते हुए प्राणी समस्त दुःखों से अतीत हो जाता है । न्यायवैशेषिक दर्शनमें इस प्रकार ज्ञान और कर्म के समुच्चयको ही मुक्तिका साधन माना गया है।
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वैशेषिक दर्शनमें निम्न नैतिक कर्तव्योंके द्वारा मुक्ति पथ का निर्देशन किया गया है - श्रद्धा, अहिंसा, प्राणीहितसाधना, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य,
१. सांख्यकारिका, ६४-६५
२. सिन्हा हरेन्द्र, भारतीय दर्शनकी रूपरेखा, १९८०, पृ. २४५
३. योग सूत्र, २, २९-३२
४. न्यायसूत्र १-१-२
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