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(1)
समर्पण और कृतज्ञताज्ञापन
(2)
प्रकाशकीय
(3) जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश की रचना
(4)
(5) प्रस्तावना
पृष्ठभूमि
विषयानुक्रमणिका
रहस्योद्घाटन
III-IV
V-VII
VIII-XI
१-१३
सुख दुःख का कारण, बाह्याभ्यन्तर जगत् की विषमता, पंच समवाय, कर्मदर्शनशास्त्र का प्रधान विषय, जैन दर्शन का श्रेय, अर्थकर्त्ता तथा ग्रन्थकर्त्ता, करणानुयोग
१४-३३
१. सामान्य परिचय २. अन्य दर्शनों में सत्ताका स्वरूप ३. जैन दर्शनमें सत्ता का स्वरूप ४. वस्तु के गुण- सामान्य, विशेष ५. साधारण या सामान्य गुण- अस्तित्व गुण, वस्तुत्व गुण, द्रव्यत्व गुण, प्रमेयत्व गुण, अगुरुलघुत्व गुण, प्रदेशत्व गुण, निष्कर्ष ६. वस्तु के असाधारण या विशेष गुण - (क) जीव द्रव्यके असाधारण गुण, (ख) पुद्गल द्रव्यके असाधारण गुण, (ग) शेष चार द्रव्यों- धर्म, अधर्म, आकाश और कालके असाधारण गुण । ७. जैन मान्य गुणोंकी न्याय वैशेषिकके गुणोंसे तुलना ८. पर्याय ९. पर्यायकी बौद्ध मान्य क्षणिकवादसे तुलना । १०. पर्यायके भेद (क) स्वभाव व्यंजन पर्याय, (ख) विभाव व्यंजन पर्याय, (ग) स्वभाव अर्थ पर्याय, (घ) विभाव अर्थ पयार्य । ११. वस्तुकी अनेकात्मकता १२. स्वचतुष्टय १३. अन्तिम इकाई १४. निष्कर्ष ।
द्वितीय अध्याय- जीव और जीवकी कर्मजनित अवस्थायें -
३४-५०
(१.) सामान्य परिचय (२) जीव की आठ विशेषतायें - १. जीव का चेतनत्व गुण २. जीव का उपयोग ३. जीव अमूर्त है ४. जीव कर्ता और भोक्ता है ५. जीव देह परिमाण है ६. जीव संसारी है - संसारी जीवों के भेद प्रभेद -
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(क.) गति के आधार पर जीवों का वर्गीकरण (ख) इन्द्रियोंके आधार पर जीवोंका वर्गीकरण (ग) प्राणों के आधार पर जीवों का वर्गीकरण
· प्रथम अध्याय - वस्तुस्वभाव
Jain Education International 2010_03
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एक चमत्कार
I
II
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