SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मबन्धके कारण तथा भेदप्रभेद १४९ पश्चात् वे उसी समय फलोन्मुख नहीं हो सकते, अपितु कुछ काल पश्चात् परिपक्व दशाको प्राप्त होकर ही उदयमें आते हैं, इस मध्यवर्तीकालको ही आबाधा काल कहते हैं ।' अग्रिम चार्ट में अबाधाकाल और कर्मों की जघन्य तथा उत्कृष्ट स्थिति निर्दिष्ट की गई है । समस्त कर्मोंकी उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति और उत्कृष्ट तथा जघन्य आबाधाकालको निम्न सारिणी में चित्रित किया गया है । अष्ट कर्मों की उत्कृष्ट तथा जघन्य स्थिति और आबाधाकाल मूलप्रकृति उत्कृष्ट स्थिति जघन्य स्थिति १. ज्ञानावरणीय २. दर्शनावरणीय ३० कोड़कोड़ी सागर " " ७० " 到 ३३ सागर २० कोड़ोकोड़ीसागर 勢 ३. वेदनीय ४. मोहनीय ५. आयु ६. नाम ७. गोत्र ८. अन्तराय ३० अन्तर्मुहूर्त तीन हजार वर्ष तिर्यंच, मनुष्य और देव इन तीन आयुको छोड़कर, शेष सभी प्रकृतियों की स्थितिका उत्कृष्ट बन्ध उत्कृष्ट संक्लेश परिणामों से होता है और जघन्य स्थिति बन्ध उससे विपरीत अर्थात् संक्लेशके कम होने से होता है । " 5 . Jain Education International 2010_03 " अन्तर्मुहूर्त १२ मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त " ८ मुहूर्त " उत्कृष्ट आबाधाकाल तीन हजार वर्ष गोम्मटसार कर्मकाण्ड, जीव तत्त्वं प्रदीपिका, गाथा १३४ " " सात हजार वर्ष १ / ३ पूर्व कोटाकोटि दो हजार वर्ष For Private & Personal Use Only जघन्य * आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त 39 , 5 21 " तिर्यंच, मनुष्य और देव इन तीनों आयुका उत्कृष्ट स्थिति बन्ध, उत्कृष्ट विशुद्ध परिणामोंसे और जघन्य स्थिति बन्ध उससे विपरीत अर्थात् संक्लेश परिणामोंसे होता है । " १. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग १, पृ० २५८ २. आदितस्तिसृणामन्तरायस्य च त्रिंशत्सागरोपमकोटीकोटयः परा स्थिति: सप्ततिमहनीयस्य, नामगोत्रयोविंशतिः, त्रयस्त्रिंशतसागरोपमाण्यायुष्यस्य तत्त्वार्थ सूत्र, ८ सूत्र १४ - १७ ३. अपराद्वादशमुहूर्तावेदनीयस्य, नामगोत्रयोरष्टौ, शेषाणामन्तर्मुहूर्तम् वही, सूत्र १८-२० ४. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ४, पृ० ४६१ ५. पंच संग्रह प्राकृत, अधिकार ४, श्लोक ४२५ ६. " www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy