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________________ कर्म तथा कर्मकी विविध अवस्थायें १०७ अवस्थासे कुछ समय पूर्व तक जीवकी आयु सत्तामें होती है और शरीरादि नामकर्म का उदय पाया जाता है। निष्कर्ष दसकरणों का उल्लेख कर्मों की अवस्थाओं के अनुरूप क्रमपूर्वक आगे पीछे किया गया है, परन्तु वस्तुत: इनका कोई क्रम नहीं है। वस्तु स्थितिमें इनको युगपत् देखा जा सकता है | किसी भी एक समयवर्ती क्रियामें युगपत विभिन्न अवस्थाओंको घटित किया जा सकता है। किसी भी एक क्रियाके द्वारा नवीन कर्मों का बन्ध, पूर्व कर्मों का उदय और सत्तामें पड़े कर्मों का अपकर्षण, उत्कर्षण और संक्रमण हो सकता है। इस प्रकार एक परिणामसे छह करण युगपत् सिद्धहो जाते हैं। निधत्त और निकाचित जातिके कठोर संस्कारों में बन्ध, उदय और सत्त्व ये तीन करण ही संभव होते हैं। ___टाटिया के अनुसार - आत्मामें होने वाला प्रत्येक परिवर्तन कर्ममें आने वाले प्रत्येक परिवर्तनके साथ तथा इसके विपरीत क्रममें भी समान रूपसे सहभागी होता है। उन्हीं के अनुसार- कर्मकी प्रक्रियाको पूर्व कल्पित “शक्ति की प्रक्रिया" कहा जा सकता है अथवा शक्तिकी प्रक्रियाको पूर्व कल्पित “कर्मकी प्रक्रिया" कहा जा सकता है। उपरोक्त दस करणोंके विवेचनसे स्पष्ट है कि जैन दर्शनके अनुसार जीव, जिस रूपमें कर्मोका बन्ध करता है, वे कर्म उसी रूपमें फलदायी नहीं होते । बन्ध से उदय तकके मध्यवर्ती कालमें, वर्तमान कर्मों के अनुसार, पूर्वकृत कर्मों में संक्रमण, अपकर्षण, उत्कर्षण आदि अनेकविध परिवर्तन प्रत्येक समयमें होते रहते हैं । डॉ० भार्गवके अनुसार, पूर्वकृत कर्मों को पुरूषार्थ के द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है, दूषित कमों में सुधार किया जा सकता है और वर्तमान कुत्सित आचरणके द्वारा पूर्वकृत कर्मों को उत्तेजक अथवा विकृत भी किया जा सकता है। - 3. "Every change in the soul synchronizes with the corresponding change in Karaman and vice versa." Tatia Nathmal; studies in Jaina Philosophy P. 254. २. वही, पृ०२५५ 2. "The previous action can be alterd, amended, aggravated or affected through exertion" Bhargava Dayanand, Jain Ethics P. 63... Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002576
Book TitleJain Darshan me Karma Siddhanta Ek Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManorama Jain
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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