________________
कहां ठहरे ? अब नहीं खोलूंगा। जहां द्वार खुला है, वहां जाओ । इस प्रकार कहकर मौन हा। तब वे दोनों समीप में स्थित घुड़साल में गए। वहां बिस्तर के अभाव में अत्यन्त ठण्ड से बीमार (तुरंगम) घोड़े की पीठ पर (अच्छाइ) ढकनेवाले आवश्यक वस्त्र को ग्रहण करके भूमि पर सोए। तब विजयराम दामाद के द्वारा विचारा गया-यहां अपमानसहित ठहरने के लिए उचित नहीं है । तब उसने मित्र को कहा- हे मित्र ! हमारी सुख शय्या क्या है ? और यह जमीन पर लोटना कसे होगा? अतः यहां से गमन ही श्रेष्ठ है । उस मित्र ने कहा इस जैसे दुःख में भी पर अन्न कहां ? मैं तो यहां ठहरूंगा। यदि तुम जाने की इच्छा रखते हो तो जाओ । तब उसने प्रभात में पुरोहित के समीप जाकर सीख व अनुज्ञा मांगी (भूतकाल) तब पुरोहित ने कहा, अच्छा । इस प्रकार वह विजयराम, भूशय्यावाला विजयराम' भी निकाला गया।
अब केवल केशव दामाद वहां ठहरा रहा, जाने की इच्छा नहीं की । पुरोहित भी केशव दामाद को निकालने के लिए युक्ति विचारता है। एक बार निज पुत्र के कान में कुछ भी कहकर जब केशव दामाद भोजन के लिए बैठा। पुरोहित का पुत्र समीप बैठा रहा तब पुरोहित पाया (और) पुत्र को पूछा- हे पुत्र ! यहां मेरे द्वारा रुपया छोड़ा गया है और वह किसके द्वारा लिया गया है ? उसने कहा-मैं नहीं जानता हूँ। पुरोहित कहता है-तुम्हारे द्वारा ही लिया गया है, हे असत्यवाद ! हे पापी ! हे धीठ ! उसको मुझे दो। अन्यथा मैं तुमको मारूगा। इस प्रकार कहकर वह जूता लेकर मारने के लिए दौड़ा। पुत्र भी मुट्ठी को बांधकर पिता के सम्मुख हो गया। वे दोनों लड़ते हुए (रहे) तब केशव उनको देखकर उनके मध्य में जाकर, मत लड़ो, मत लड़ो इस प्रकार कहकर खड़ा रहा। तब वह पुरोहित, हे दामाद ! हटो हटो कहकर उसको जूते से पीटा । पुत्र भी हे केशव ! दूर हो, दूर हो इस प्रकार कहकर मुट्ठी से उस केशव को पीटा। इस प्रकार पिता-पुत्र ने केशव को ताड़ा । तब वह उनके द्वारा धक्का मुक्के में ताड़ा जाते हुए शीघ्र भाग गया, इस प्रकार धक्का मुक्के से केशव बिना कहकर गया।
उस दिन पुरोहित राजसभा में देर से गया । राजा ने उसको पूछा-तुम देर से क्यों आए हो । उसने कहा-विवाह महोत्सव में चार दामाद पाए। वे भोजनरस के लोभी चिरकाल तक ठहरे और जाने के लिए इच्छा नहीं करते हैं । तब युक्तिपूर्वक वे सभी निकाले गये, इस प्रकार -
प्राकृत अभ्यास सौरम ]
[ 193
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org