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________________ प्रसन्ने रणरंगे (आसन्न) 7/1 वि [(रण)- (रंग) 7/1] (मूढ 7/1 तहेव दुभिक्खे जस्स (मंत) 7/1 अव्यय (दुभिक्ख) 7/1 (ज) 6/1 स (मुह) 1/1 (जो+इज्ज) व कर्म 3/1 सक () 1/1 स (पुरिस) 1/1 (महियल) 7/1 (विरल) I/I वि =समीपस्थ = युद्ध में =कर्तव्य की सूझ से हीन व्यक्ति में =परामर्श में - उसी प्रकार =अकाल में -जिसका =मुंह =देखा जाता है -वह =पुरुष =पृथ्वी पर =दुर्लभ जोइज्जइ पुरिसो महियले विरलो -तब -एक तया एगेण मंतिणा भणियं ज मन्नह ता विवाय अव्यय (एग) 3/1 वि (मंति) 3/1 (भरण) भूकृ 1/1 अव्यय (मन्न) विधि 2/2 सक अव्यय (विवाय) 2/1 (भज्ज) व 1/1 सक (त) 3/2 स (जप) भूकृ 1/1 (ज) 1/1 स [(राय हंस) -(व्व(अ)- समान)] [ (गुण)-(दोस)-(परिक्ख) 2/1] (कर) संकृ भज्जेमि =मन्त्री के द्वारा =कहा गया - यदि =मानो -तब = विवाद =हल करता हूं (कर दूंगा) - उनके द्वारा -कहा गया =जो =राजहंस के समान =गुण-दोष परीक्षा =करके तेहि जंपियं जो रायहंसब्व गुणदोसपरिक्वं काऊण प्राकृत अभ्यास सौरम ] [ 179 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002575
Book TitlePrakrit Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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