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________________ श्रनियमित कर्मवाच्य के क्रिया- रूप ( प्राकृत में ) सकर्मक क्रिया में 'इज्ज', 'ईश्र / ईय' प्रत्यय लगाकर जो रूप बनाया जाता है वह कर्मवाच्य का नियमित क्रिया रूप कहा जाता है । जैसे - 'कर' क्रिया में 'इज्ज' या 'ईश्र / ईय' प्रत्यय लगाकर बनाया गया - 'कर + इज्ज - करिज्ज'; 'कर + ईय / ई = करीय / करी ' रूप कर्मवाच्य का नियमित रूप है । 1 काल, पुरुष और वचन का प्रत्यय जोड़ने पर उस काल, पुरुष और वचन में कर्मवाच्य का नियमित क्रिया-रूप बन जायेगा । जैसे - करिज्ज‍ या करीयइ / करीमइ = वर्तमानकाल, अन्य पुरुष, एकवचन । इसके विपरीत सकर्मक क्रिया में बिना 'इज्ज' या 'ईश्र / ईय' प्रत्यय लगाए जो रूप तैयार मिलता है, उसमें काल, पुरुष और वचन का प्रत्यय लगा रहता है, वह कर्मवाच्य का अनियमित क्रिया रूप कहा जाता । जैसे— अभ्यास - 38 इनमें क्रिया को अलग नहीं किया जा सकता है । इनका ज्ञान साहित्य में उपलब्ध प्रयोगों के आधार से किया जाना चाहिए | अनियमित कर्मवाच्य के कुछ क्रियारूप संग्रहीत हैं 1. कोरइ, दोसइ प्रादि- अनियमित कर्मवाच्य का क्रिया रूप ( वर्तमानकाल, अन्य पुरुष, एकवचन ) । वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन 148 1. श्राढप्पइ = आरम्भ किया जाता है । 3 खम्मइ = खोदा जाता है । 5. घेप्पइ = ग्रहण किया जाता है । 7. जिव्बइ = जीता जाता है । 9. गज्जइ = जाना जाता है । 1. देखें 'प्राकृत रचना सौरभ' पाठ 54 1 Jain Education International 2010_03 2. कोरइ = किया जाता है । 4. गम्मइ = जाया जाता है । 6. छिप्पइ = छुपा जाता है । 8. डज्झइ == जलाया जाता है । 10. पवइ = जाना जाता है । For Private & Personal Use Only [ प्राकृत अभ्यास सौरभ www.jainelibrary.org
SR No.002575
Book TitlePrakrit Abhyasa Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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