SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आयारो सूत्र-१२३ ३५. प्राणी सब ओर से भय का अनुभव करते हैं। ऐसी कौन सी दिशा या विदिशा है, जिससे और जहां प्राणी को भय न हो ? रेशम का कीड़ा सब ओर से भयभीत होता है। अतएव वह अपनी सुरक्षा के लिए कोश का निर्माण करता है। प्रत्येक दिशा और विदिशा में प्राणी हैं और वे शारीरिक और मानसिक दुःखों से संत्रस्त हैं। सूत्र-१४७ ३६. प्रस्तुत सूत्र की व्याख्या अनेक नयों से की जा सकती है, जैसे १. वस्तु का आन्तरिक स्वरूप सूक्ष्म और बाह्य स्वरूप स्थूल होता है। स्थूल को जानना सरल और सूक्ष्म को जानना कठिन होता है। सूक्ष्म को जानने वाला स्थूल को स्पष्टतया जान लेता है। स्थूल को जाननेवाला सूक्ष्म को उसके माध्यम से ही जान पाता है। आत्मा आंतरिक तत्त्व है। उसका चेतन स्वरूप स्पष्टतया ज्ञात नहीं होता। किन्तु शरीर में उसकी जो क्रिया प्रकट होती है, वह स्थूल है, बाह्य है । उसके माध्यम से जाना जा सकता है कि अचेतन शरीर चेतना की क्रिया नहीं कर सकता । यह जो चेतना की क्रिया प्रकट हो रही है, वह इसके भीतर अवस्थित चेतन तत्त्व की क्रिया है। २. व्यक्ति को सुख-दुःख का संवेदन प्रत्यक्ष होता है, इसलिए सुख-दुःख स्वसंवेदन प्रत्यक्ष है । दूसरे के सुख-दुःख का संवेदन स्वसंवेदन के आधार पर जाना जा सकता है। इसलिए दूसरों के सुख-दुःख का संवेदन परोक्ष है। निमित्तों के मिलने पर जो अपने में घटित होता है, वही दूसरों में घटित होता है और जो दूसरों में घटित होता है, वही अपने में घटित है। ३. ज्ञान सूर्य की भांति स्व-पर-प्रकाशी है। जैसे सूर्य स्वयं प्रकाशित है और दूसरों को प्रकाशित करता है, वैसे ही ज्ञान स्वयं प्रकाशित है और दूसरे तत्त्वों को प्रकाशित करता है। ज्ञान का कार्य है ज्ञेय को जानना। ज्ञान स्वप्रकाशी है, इसलिए वह अध्यात्म को जानता है-अपने-आप को जानता है। वह परप्रकाशी भी है; इसलिए बाह्य को जानता है-अपनी आत्मा से भिन्न समग्र ज्ञेय को जानता है । बाह्य जगत् और अन्तर्जगत् को जानने वाला ज्ञान एक ही है। इसीलिए सूत्रकार ने कहा है-जो अध्यात्म को जानता है, वह बाह्य को जानता है और जो बाह्य को जानता है, वह अध्यात्म को जानता है। सूत्र-१४६-१४८ ३७. अहिंसा के तीन आलम्बन हैं For Private & Personal Use Only Jain Education International 2010_03 www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy