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________________ शस्त्र-परिज्ञा जरायुज-जन्म के समय में जो जरायु-वेष्टित दशा में उत्पन्न होते हैं, वे जरायुज कहलाते हैं । भैस, गाय आदि इसी रूप में उत्पन्न होते हैं। जरायु का अर्थ गर्भ-वेष्टन या वह झिल्ली है, जो शिशु को आवृत किए रहती है। रसज-छाछ, दही आदि रसों में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म शरीर जीव रसज कहलाते हैं। संस्वेदज-पसीने से उत्पन्न होने वाले खटमल, यूका (जं) आदि जीव संस्वेदज कहलाते हैं। सम्मूच्छिम-बाहरी वातावरण के संयोग से उत्पन्न होने वाले शलभ, चींटी, मक्खी आदि जीव सम्मूच्छिम कहलाते हैं। ___औपपातिक--उपपात का अर्थ है अचानक घटित होने वाली घटना। देवता और नारकीय जीव एक मुहूर्त के भीतर ही पूर्ण युवा बन जाते हैं इसीलिए इन्हें औपपातिक- अकस्मात् उत्पन्न होने वाला कहा जाता है। सूत्र-११६ ३२. त्रस-लोक को संसार कहने के दो अभिप्राय हो सकते हैं। १. परिभ्रमणात्मक जगत् । २. गत्यात्मक जगत् । इस अष्टविध योनि-संग्रह में जीव परिभ्रमण करते हैं-जन्म-मरण करते हैं; इसलिए वह संसार है। इस योनि-संग्रह में उत्पन्न जीव ही गतिमान होते हैं ; अतः वह संसार है। सूत्र-१२० ३३. यहां संसार-म्रमण के दो कारण निर्दिष्ट हैं १. मंदता-निर्णायक बुद्धि या विवेक का अभाव । २. अज्ञान। पटुता और ज्ञान प्राप्त होने पर मनुष्य मुक्ति की ओर प्रस्थान कर देता है। सूत्र-१२१-१२२ ३४. स्वाद्य, सुख, अभय और परिनिर्वाण-ये सुख के पर्यायवाची हैं। अस्वाद्य, दुःख, महाभय और अपरिनिर्वाण-ये दुःख के पर्यायवाची हैं। सब प्राणियों को शान्ति प्रिय है और अशांति अप्रिय है। जो पुरुष इस शाश्वत सत्य को जानता-देखता है, वही अहिंसक हो सकता है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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