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शस्त्र-परिज्ञा
जब हमारा ज्ञान परोक्ष होता है, तब हम अध्ययन, मनन और ध्यान के द्वारा वस्तु का ज्ञान प्राप्त करते हैं। इस ज्ञान-धारा में वस्तु का अस्पष्ट बोध होता है। उसके कुछेक पर्याय ज्ञात होते हैं। ___ हम विशिष्ट ध्यान से या ज्ञानावरण का विलय होने पर वस्तु का प्रत्यक्ष बोध करते हैं। यह बोध स्पष्ट होता है। इससे वस्तु के समग्र पर्याय ज्ञात हो जाते हैं।
प्राचीन काल में मुनि लोग ध्यान की विशिष्ट पद्धतियों के द्वारा वस्तुओं का साक्षात्कार करते थे। यान्त्रिक उपकरण (सूक्ष्मदर्शी यन्त्र आदि) वस्तु के बोध और विश्लेषण का एकमात्र विकल्प नहीं हैं।
विशिष्ट ध्यान और अनावृत चेतना के द्वारा वस्तु का प्रत्यक्ष बोध किया जा सकता है। प्रत्यक्ष ज्ञान की उपलब्धि के चार सोपान हैं
१. पराक्रम-साधना में शक्ति का समुचित प्रयोग । २. संयम-इन्द्रियों और मन का निग्रह । ३. यम-क्रोध, मान, माया और लोभ का निग्रह । ४. अप्रमाद-सतत जागरूकता।
सूत्र-७३ २६. नियुक्ति में अग्निकाय के शस्त्र इस प्रकार निर्दिष्ट हैं
१. मिट्टी या धूलि। २. जल। ३. आर्द्र वनस्पति । ४. वस प्राणी। ५. स्वकाय शस्त्र---पत्तों की अग्नि का तृण की अग्नि शस्त्र है। ६. परकाय शस्त्र-जल आदि । ७. तदुभय शस्त्र-तुषमिश्रित अग्नि दूसरी अग्नि का शस्त्र है। ८. भाव शस्त्र-असंयम ।
सूत्र-९१ २७. क्रिया और ज्ञान-दोनों एक ही साधना के दो पहल हैं। ज्ञान-हीन क्रिया और क्रिया-हीन ज्ञान फलवान् नहीं होता; इसलिए आचार्य ने साधक को निर्देश दिया है कि वह अहिंसा का आचरण करने से पूर्व उसका ज्ञान प्राप्त करे। इस सूत्र में ज्ञान के दो क्रम निर्दिष्ट हैं
१. मनन । २. आत्मतुला की अनुभूति ।
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