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________________ ६२ सूत्र -- ५७ २१. निर्युक्ति में जलकाय के शस्त्र इस प्रकार निर्दिष्ट हैं १. उत्सेचन – कुए से जल निकालना । २. गालन - जल छानना । ३. धावन - जल से उपकरण आदि धोना । ४. स्वकाय शस्त्र५. परकाय शस्त्र - मिट्टी, तेल, क्षार, अग्नि आदि । ६. तदुभय - जलमिश्रित मिट्टी । ७. भाव शस्त्र असंयम | - -नदी का जल तालाब के जल का शस्त्र है । सूत्र - ५८ २२. परिव्राजक अदत्त जल का प्रयोग नहीं करते थे । वे जलाशय के स्वामी की अनुमति लेकर ही जल लेते थे । इस पर भी जैन श्रमणों का यह तर्क था कि क्या जल के जीवों ने अपने प्राण हरण की अनुमति दी है ? यदि नहीं दी है, तब सजीव जल का प्रयोग कर उनके प्राणों का हरण करना अदत्तादान कैसे नहीं होगा ? सूत्र - ५९ २३. जैन श्रमण कहते थे - सजीव जल का प्रयोग करना हिंसा है, अदत्तादान है । आजीवक आदि श्रमणों का अभिमत था कि जल सजीव नहीं है, अतः इसका प्रयोग करना न हिंसा हैं और न अदत्तादान है । हम जल का प्रयोग कर सकते हैं, फिर भी केवल पीने के लिए उसका प्रयोग करते हैं । " १ आयारी सूत्र - ६० २४. परिव्राजक आदि स्नान, पान आदि सीमित प्रयोजनों से जलकायिक जीवों की परिमित हिंसा करते हैं, किन्तु उनके लिए हिंसा सर्वथा अकरणीय नहीं है । सूत्र - ६८ २५. इस सूत्र से फलित होता है कि प्रत्यक्ष ज्ञान की उपलब्धि के चार सोपान है - वस्तु को जानने के दो साधन हैं : १. परोक्ष ज्ञान २. प्रत्यक्ष ज्ञान १. इस प्रसंग में मोवाइय, सूत्र १११ - ११३ और १३७-१३८ द्रष्टव्य हैं । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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