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आयारो
सूत्र-२३ १२. बोधि तीन प्रकार की होती है
ज्ञानबोधि, दर्शनबोधि और चरित्रबोधि । ज्ञान और दर्शन ये दोनों बोधात्मक हैं और चरित्र आचारात्मक । बोधि शब्द में ये दोनों अर्थ निहित हैं। हिंसा बोधि-लाभ के लिए महान् अन्तराय है।
सूत्र-२५ १३. भगवान् महावीर से गणधर गौतम को अहिंसा का बोध प्राप्त हुआ था। कुछ व्यक्तियों ने भगवान् के अन्य शिष्यों से अहिंसा का बोध प्राप्त किया था। चरक आदि परिब्राजक तथा प्रत्येक बुद्ध अनगार भी जनता को अहिंसा का बोध देते थे। ___ हिंसा कर्म-ग्रन्थि, मोह, मृत्यु और नरक का हेतु है । यह उनका प्रबल हेतु है, इसलिए इसे ग्रन्थि आदि का हेतु कहने की अपेक्षा ग्रन्थि आदि कहना अधिक संगत है।
सूत्र-२८-३० १४. शिष्य ने पूछा-भंते ! पृथ्वीकायिक जीव न देखता है, न सुनता है, न बोलता है और न चलता है, फिर यह कैसे माना जाए कि वह जीव है और भेदनछेदन करने से उसे कष्ट का अनुभव होता है ?
भगवान् ने कहा-आर्य ! कोई मनुष्य जन्मना अंध, बधिर, मूक और पंगु है । मृगापुत्र की भांति अवयवहीन है, नाम मात्र का मनुष्य है। कोई व्यक्ति उसका भेदन-छेदन करता है। वह न देख सकता, न सुन सकता, न बोल सकता और न चल सकता है। क्या दर्शन, श्रवण, वाणी और गति के अभाव में यह मान लिया जाए कि वह जीव नहीं है और भेदन-छेदन करने से उसे कष्ट का अनुभव नहीं होता ?
भगवान् ने फिर कहा-आर्य ! कुछ मनुष्य (किसी मनुष्य के शरीर के पैर आदि बत्तीस अवयवों का एक साथ भेदन-छेदन करते हैं। उस समय वह मनुष्य) न देख सकता है, न सुन सकता है और न चल सकता है। फिर क्या वह जीव नहीं है ? क्या उसे कष्ट का अनुभव नहीं होता ?
शिष्य बोला-भंते ! आपने बहुत ठीक कहा ; फिर भी मेरा मन समाहित नहीं हुआ है। क्योंकि इन्द्रिय-विकल मनुष्य बाह्य रूप में वेदना को प्रकट नहीं कर सकता, किन्तु उसमें प्राणों का स्पंदन विद्यमान है। पृथ्वीकायिक जीव में वह नहीं है।
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