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________________ शस्त्र-परिज्ञा सूत्र-१५ ९. आतुर अनेक प्रकार के होते हैं -कामातुर, भोगातुर, सुखातुर आदि । काम-भोग से आतुर व्यक्ति भोग-सामग्री को पाने के लिए हिंसा करते हैं। सुखातुर व्यक्ति सुख के साधनों की प्राप्ति के लिए हिंसा करते हैं। आतुरता मन की शान्त स्थिति में क्षोभ उत्पन्न करती है । क्षुब्ध मनुष्य लालसा के वशीभूत हो हिंसा में प्रवृत्त हो जाता है। सूत्र-१६ १०. गौतम ने पूछा--- भन्ते ! दो, तीन, चार या पांच पृथ्वीकायिक जीव एकत्र होकर किसी एक सामुदायिक शरीर का निर्माण करते हैं; उसका निर्माण कर फिर आहार करते हैं; उसका परिणमन करते हैं; और उस परिणमन के द्वारा फिर शरीर का निर्माण करते हैं ? भगवान्-वे ऐसा नहीं करते। पृथ्वीकायिक जीव पृथक-पृथक् शरीर का निर्माण करते हैं । उनका आहार व परिणमन भी व्यक्तिगत होता है। सूत्र-१९ ११. इस विश्व में अनेक जीव हैं और अनेक पदार्थ । एक ही पदार्थ कुछ जीवों के लिए पोषक होता है और कुछ जीवों के लिए मारक । जो पदार्थ जिस जीवकाय के लिए मारक होता है, वह उसके लिए शस्त्र होता है। नियुक्ति में पृथ्वीकाय के शस्त्र इस प्रकार निर्दिष्ट हैं१. कुदाली आदि खनन के उपकरण, हल आदि विदारण के उपकरण । २. मृगशृग। ३. काष्ठ। ४. अग्नि । ५. उच्चार-प्रस्रवण (मल-मूत्र)। ६. स्वकाय शस्त्र-काली मिट्टी का शस्त्र पीली मिट्टी आदि । ७. परकाय शस्त्र-जल आदि । ८. तदुभय शस्त्र-मिट्टी मिश्रित जल । ९. भाव शस्त्र-असंयम। १. भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य एवं प्रथम गणधर-इन्द्रभूति गौतम । २. भगवती सूत्र, १६।५ । Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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