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शस्त्र-परिज्ञा
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सूत्र--३ ३. आत्मा सूक्ष्म है, इसलिए वह चर्म-चक्षुओं के प्रत्यक्ष नहीं है। परोक्ष तत्त्व को जानने के दो साधन हैं
१. स्वयं का अतिशायी ज्ञान, २. अतिशायी ज्ञानी का वचन।
साधक को साधना में स्थिर करने के लिए उसे किसी एक परोक्ष विषय का साक्षात् करा देता आवश्यक है। भगवान् महावीर शिष्यों को जाति-स्मृति (पूर्वजन्म की स्मृति) करा देते थे। उससे उन्हें आत्मा के वैकालिक अस्तित्व का बोध हो जाता और वे आत्मा के विशुद्ध स्वरूप की उपलब्धि के लिए साधना में लग जाते।
मेघकुमार मगध-सम्राट् श्रेणिक का पुत्र था। वह भगवान महावीर के पास दीक्षित हुआ। वह जिस दिन दीक्षित हुआ, उसी रात्रि में फिर घर जाने को तैयार हो गया। प्रातःकाल भगवान के पास गया। भगवान् ने कहा-मेधकुमार ! तुम स्थान की असुविधा से निद्रा-भंग होने के कारण क्षुब्ध हो गए हो, पुनः घर जाने की बात सोच रहे हो । क्यों यह ठीक है न ?
मेघकुमार-हां, भन्ते ! सही है।
भगवान्-मेघकुमार ! तू पूर्व जन्म में मेरुप्रभ नाम का हाथी था। एक बार जंगल में आग लग गई । जंगली जानवर एक घास-रहित मंडल में एकत्र हो गए। सारा मंडल जीव-जन्तुओं से भर गया। पैर रखने को भी स्थान खाली नहीं रहा। तुने शरीर को खुजलाने के लिए पैर ऊंचा किया। एक खरगोश तुम्हारे पैर के नीचे आकर बैठ गया। तूने पैर नीचे रखना चाहा। खरगोश को नीचे बैठा देख तूने अनुकम्पापूर्वक अपना पैर अधर रख लिया। ढाई दिन-रात तक तू अपने पैर को अधर में लटकाए रहा। दावानल शान्त हो गया । पशु अपने-अपने स्थान पर चले गए। वह खरगोश भी वहां से चला गया। उस समय तूने पैर को नीचे रखना चाहा । किन्तु तुम्हारा पैर अकड़ गया था । तू धमाके के साथ नीचे गिर गया। ___ मेधकुमार ! तूने हाथी के जन्म में इतना बड़ा कष्ट सहा और अब तू मनुष्य है और मनुष्य-जीवन में भी संयमी है। तू थोड़े से कष्ट से क्षुब्ध हो गया ! क्या यह उचित है ? एक खरगोश की अनुकम्पा के लिए तुम्हारा पैर अधर में लटकता रहा, क्या अब अनेक जीवों की हिंसा के लिए तुम्हारा चरण असंयम की भूमि पर टिकेगा?
__ भगवान् की बात सुनकर मेघकुमार ईहा और गवेषणा की गहराई में डुबकी लेने लगा। उसे अपने पूर्वजन्म की स्मृति हो आई । भगवान् के द्वारा पूर्वजन्म की स्मृति कराने पर उसकी श्रद्धा पहले से दुगुनी हो गई, उसका संवेग दुगुना हो गया।
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