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टिप्पण
सूत्र-१ १. संज्ञा का अर्थ है-चेतना । वह दो प्रकार की होती है-ज्ञान-चेतना और अनुभव-चेतना। ज्ञान-चेतना से मनुष्य जानता है और अनुभव-चेतना से संवेदन करता है। __सूत्रकार ने बतलाया है कि कुछ मनुष्यों में अपने पूर्व जन्मों की ज्ञान-चेतना नहीं होती।
सूत्र-१,२ २. चेतन की क्रिया अचेतन से भिन्न है, इसलिए चेतन के अस्तित्व को सब दार्शनिक स्वीकार करते थे और आज भी करते हैं। चेतन की क्रिया प्रत्यक्ष है; इसलिए उसे अस्वीकार किया भी नहीं जा सकता। उसके त्रैकालिक अस्तित्व के विषय में मतभेद रहा है। कुछ दार्शनिकों ने उसके पैकालिक अस्तित्व को स्वीकार किया और कुछ ने नहीं किया।
चेतन के कालिक अस्तित्व को स्वीकार करने वाले आत्मवादी और उसे अस्वीकार करने वाले अनात्मवादी कहलाते हैं। ___ अनात्मवादी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं, किन्तु उसके अनुसंचरण --अतीत और भविष्य कालीन अस्तित्व (पूर्वजन्म या पुनर्जन्म) को स्वीकार नहीं करते। वे आत्मा के कालिक अस्तित्व को मानते ही नहीं, तब उनके लिए उसे प्रत्यक्षतः जानने का प्रश्न ही नहीं होता।
आत्मवादी आत्मा के कालिक अस्तित्व को मानते हैं, किन्तु मानते हुए भी सब उसे जान नहीं पाते। इस समूचे अज्ञात को चार प्रश्नों में संकलित किया गया
. १. मैं कहां से आया हूं ?
२. और कहां जाऊंगा? ३. मैं कौन था ? ४. और क्या होऊंगा ?
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