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शस्त्र-परिज्ञा
१७४. बोधि-सम्पन्न (अहिंसक) के लिए पूर्ण सत्यप्रज्ञ अन्तःकरण से पापकर्म
(हिंसा का आचरण व विषय का सेवन) अकरणीय है।
१७५. [पाप कर्म अकरणीय हैं; इसलिए अहिंसक] उसका अन्वेषण न करे ।
हिंसा-विवेक १७६. यह जानकर मेधावी मनुष्य स्वयं छह जीवनिकाय-शस्त्र का समारम्भ न
करे, दूसरों से उसका समारम्भ न करवाए, उसका समारम्भ करने वालों का अनुमोदन न करे।
१७७. जिसके छह जीवनिकाय-सम्बन्धी कर्म-समारम्भ परिज्ञात होते हैं, वही परिज्ञात-कर्मा (कर्म-त्यागी) मुनि होता है।
-ऐसा मैं कहता हूं।
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