________________
विमोक्ष
३१५
के ग्लान होने पर भिक्ष को समाधि-मरण की तैयारी-संलेखना प्रारम्भ कर देनी चाहिए। आहार का संवर्तन, कषाय का विशेष जागरूकता से अल्पीकरण और शरीर का स्थिरीकरण-ये संलेखना के मुख्य अंग हैं। ___ 'उत्थान' तीन प्रकार का होता है : दीक्षा लेना-संयम का उत्थान, ग्रामानुग्राम विहार करना-अभ्युद्यत विहार का उत्थान; और शारीरिक अशक्ति का अनुभव होने पर संलेखना करना-अभ्युद्यत मरण का उत्थान ।
सूत्र-१०६ १८. अनशन करते समय उस भिक्ष का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। उसकी अंजलि मस्तक का स्पर्श करती हुई होनी चाहिए। वह सिद्धों को नमस्कार कर इत्वरिक अनशन का संकल्प करे। इस अनशन में नियत क्षेत्र में संचरण किया जा सकता है । इसलिए इसे इत्वरिक कहा गया है । यहां इसका अर्थ अल्पकालिक अनशन नहीं है।
श्लोक-१ १६. समाधि-मरण के लिए किया जाने वाला अनशन तीन प्रकार का होता है :
१. भक्त-प्रत्याख्यान, २. इंगिणि-(इंगित) मरण (इत्वरिक अनशन), ३. प्रायोपगमन,
पांचवें उद्देशक में भक्त-प्रत्याख्यान, छठे में इंगिणि-मरण और सातवें में प्रायोपगमन का विधान किया गया है। चौथे उद्देशक में विहायोमरण का विधान है । वह आपवादिक है।
अनशन दो प्रकार का होता है-सपराक्रम और अपराक्रम ।
जंघा-बल होने पर किया जाने वाला अनशन सपराक्रम और जंघा-बल के क्षीण होने पर किया जाने वाला अनशन अपराक्रम होता है।
प्रकारान्तर से अनशन दो प्रकार का होता है-व्याघात-युक्त और अव्याघात। पूर्व उद्देशकों में व्याघात-युक्त अनशन का विधान है । प्रस्तुत उद्देशक में अव्याघात अनशन की विधि प्रतिपादित की गई है। अव्याघात अनशन आकस्मिक नहीं होता । वह क्रम-प्राप्त होता है। इसलिए उसे आनुपूर्वी भी कहा जाता है (नियुक्ति, गा० २६३)।
दीक्षा लेना, सूत्र का अध्ययन करना, अर्थ का अध्ययन करना, सूत्र और अर्थ में स्वयं कुशलता प्राप्त कर योग्य शिष्य को सूत्रार्थ का ज्ञान कराना, फिर गुरु से अनुज्ञा प्राप्त कर संलेखना करना, फिर तीन प्रकार के अनशनों में से किसी एक अनशम का चुनाव कर, आहार, उपधि और शय्या-इस विविध नित्य-परिभोग
Jain Education International 2010_03
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org