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________________ ३१४ आयारो कोई वस्त्र न ओढ़े । यदि वस्त्र दुर्लभ हो, आगामी हेमन्त में मिलने की संभावना न हो, तो अति जीर्ण वस्त्र को विसर्जित करे और शेष को धारण करे, किन्तु उन्हें काम में न ले । यदि एक वस्त्र अधिक जीर्ण हो, तो उसे विसर्जित कर दे और दो वस्त्र धारण करे। अथवा दो वस्त्र अति जीर्ण हों, तो दो को विसर्जित कर दे, एक को धारण करे । अथवा तीनों अति जीर्ण हों, तो तीनों को विजित कर दे। १५. बाईस परीषहों में स्त्री और सत्कार-दो शीत और शेष बीस परीषह उष्ण होते हैं (आचा० नियुक्ति अ० ३, गा० २०२) । प्रस्तुत प्रकरण में शीत स्पर्श का अर्थ स्त्री-परीषह या काम-भोग है। सूत्र-५७-६१ १६. भिक्षु भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर जाता है; उस समय उसके पारिवारिक लोग उसे घर में रखने का प्रयत्न करते हैं अथवा किसी अन्य घर में जाने पर कोई स्त्री मुग्ध होकर उसे अपने घर में रखने का प्रयत्न करती है। उस स्थिति में उसे क्या करना चाहिए ? प्रस्तुत आलापक में सूत्रकार ने इसका निर्देश दिया है। मरण दो प्रकार का होता है-बाल-मरण और पण्डित-मरण । वेहानसफांसी लगाकर मरना बाल-मरण है। अनशन पण्डित-मरण है (भगवती सूत्र, २।४९) । किन्तु तात्कालिक परिस्थिति में फंसा हुआ भिक्षु अनशन का प्रयोग कैसे करे ? उस समय ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए उसे वेहानस-मृत्यु के प्रयोग की स्वीकृति दी गई है। इस स्थिति में वह बाल-मरण नहीं है। सूत्रकार यहां एक स्थिति की ओर संकेत करते हैं। कोई भिक्षु भिक्षा के लिए जाए । पारिवारिक लोग उसकी पूर्व-पत्नी-सहित उसे कमरे में बंद कर दें। वह उससे बाहर निकल न सके । उसकी पूर्व-पत्नी उसे विचलित करने का प्रयत्न करे। तब वह श्वास बंद कर मृतक जैसा हो जाए और अवसर पाकर गले में दिखावटी फांसी लगाने का प्रयत्न करे। उस समय वह स्त्री कहे-आप चले जाएं, किन्तु प्राण-त्याग न करें। तब भिक्षु आ जाए और यदि वह स्त्री उसे ऐसा न कहे, तो वह गले में फांसी लगाकर प्राण-त्याग कर दे। ऐसा करना बाल-मरण नहीं हैयह भगवान् महावीर के द्वारा अनुज्ञात है। सूत्र-१०५ १७. सामान्यतः मनुष्य रोग से ग्लान होता है । चूर्णिकार ने बताया है कि अपर्याप्त भोजन, अपर्याप्त वस्त्र, अवस्त्र और प्रहरों तक ऊकडू आसन में बैठना-इनसे अग्लान भी ग्लान जैसा हो जाता है । तपस्या से भी शरीर ग्लान हो जाता है। शरीर Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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