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आयारो
सूत्र-८० २७. अति आहार करने वाले को वासना अधिक सताती है। कम खाना वासना को शांत करना है।
सूत्र-८१ २८. ऊर्ध्वस्थान रात को अवश्य करना चाहिए । आवश्यकतानुसार दिन में भी किया जा सकता है। आवश्यकता के अनुसार एक, दो, तीन या चार प्रहर तक ऊर्ध्वस्थान करना वासना-शमन का असाधारण उपाय है। 'ऊर्ध्वस्थान' शब्द भगवती सूत्र (१९) में आई हुई उड्ढंजाणू, अहोसिरे 'ऊर्ध्वजानुः अधःशिरा' इस मुद्रा का सूचक है । हठयोग प्रदीपिका में भी "ऊर्ध्वनाभिरधस्तालुः" (३।७९) और "अधः शिराश्चोर्ध्वपाद:" (३८१)-ऐसे प्रयोग मिलते हैं।
ऊर्ध्वस्थान मुख्यतः सर्वांगासन और गौण रूप में शीर्षासन, वृक्षासन आदि का सूचक है। इन आसनों से वासना-केन्द्र शान्त होते हैं। उनके शांत होने से वासना भी शांत होती है।
सूत्र-८२ २९. सुखशीलता की स्थिति में वासना उभरती है। ग्रामानुग्राम विहार श्रम या कष्ट-सहिष्णुता का अभ्यास है। इसलिए वह वासना-मुक्ति का सहज उपाय है।
ग्रामानुग्राम विहार से 'गमन-योग' सहज ही सध जाता है।
ग्रामानुग्राम विहार करने वाला परिचय के बंधन से भी सहज ही मुक्ति पा लेता है।
सूत्र-८३ ३०. वासना-शमन के लिए एक उपवास से लेकर दीर्घकालीन तप अथवा आहार का जीवन-पर्यन्त परित्याग भी विहित है।
सूत्र-८४ ३१. वासना को वातावरण उत्तेजित करता है, किन्तु उसे सर्वाधिक उत्तेजना देता है--संकल्प । इसलिए काम को संकल्प से उत्पन्न कहा जाता है।
"काम ! जानामि ते मूलं, संकल्पात् किल जायसे।
संकल्पं न करिष्यामि, तेन मे न भविष्यसि ।। काम ! मैं तुम्हारे मूल को जानता हूँ। तू संकल्प से उत्पन्न होता है। मैं संकल्प नहीं करूंगा। फलतः तू मेरे मन में उत्पन्न नहीं हो सकेगा।
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