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लोकसार
सूत्र - ६५
२३. बाधाओं को कैसे सहन करना चाहिए, उनके सहन करने या न करने से क्या लाभ-अलाभ होता है ? - इन सारी स्थितियों को जानने वाला ही उनको समाहित कर सकता है ।
सूत्र - ७२
२४ प्राणी का वध होने पर कर्म का बंध एक जैसा नहीं होता, किन्तु व्यक्ति की कषाय की तीव्रता - मंदता और भावधारा के अनुरूप होता है। काय-स्पर्श से प्राणी का वध हो जाने पर
२१७
१. चरम समाधि-सम्पन्न ( शैलेशी दशा प्राप्त योगी ) मुनि के कर्म - बन्ध नहीं होता ।
२. मन, वचन और काया की प्रवृत्ति वाले वीतराग के दो समय की स्थिति वाला कर्म-बन्ध होता है ।
३. ( अवीतराग) अप्रमत्त मुनि के जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः आठ मुहूर्त की स्थिति का कर्म-बन्ध होता है ।
४. विधिपूर्वक प्रवृत्ति करने वाले प्रमत्त मुनि के जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः आठ वर्ष तक की स्थिति का कर्म-बन्ध होता है । वह वर्तमान जीवन में इसका वेदन कर इसे क्षीण कर देता है ।
सूत्र---७७
२५. इसकी तुलना आचार्य कुन्दकुन्द की इस गाथा से होती हैतिमिरहरा जई दिट्ठी, जणस्स दोवेण णत्थि कादव्वं । तध सोक्खं सयमादा, विसया कि तत्थ कुव्वंति ॥ " जिसकी दृष्टि तिमिर को हरण करने वाली है, उसे दीप से क्या प्रयोजन ? आत्मा स्वयं सुख है, फिर विषयों से क्या प्रयोजन ?
सूत्र - ७९
२६. शक्तियुक्त भोजन करने से शरीर शक्तिशाली होता है । सशक्त शरीर में मोह को प्रबल होने का अवसर मिलता है । शक्तिहीन भोजन करने से शरीर की शक्ति घट जाती है । वैसे शरीर में मोह भी निर्बल हो जाता है । इसलिए वासना को शांत करने का पहला उपाय निर्बल आहार बतलाया गया है ।
१. प्रवचनसार, ६७ ।
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