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________________ ११४ आयारो कामी बार-बार उस काम के पीछे दौड़ता है । काम अकाम से शांत होता है। अनुपरिवर्तन के सिद्धान्त को समझने वाले व्यक्ति में काम के प्रति परवशता की अनुभूति जागृत होती है और वह एक दिन उसके पाश से मुक्त हो जाता है। सूत्र-१२७ २०. चित्त को काम-वासना से मुक्त करने का तीसरा आलंबन है-संघि-दर्शनशरीर की संघियों (जोड़ों) का स्वरूप-दर्शन कर उसके यथार्थ रूप को समझना; शरीर अस्थियों का ढांचा-मात्र है; उसे देखकर उससे विरक्त होना । शरीर में एक सौ अस्सी संधियां मानी जाती हैं। चौदह महासंधियां हैं-तीन दाएं हाथ की संधियां-कन्धा, कुहनी, पहुंचा। तीन बाएं हाथ की संधियां। तीन दाएं पैर की संधियां-कमर, घुटना, गुल्फ । तीन बाएं पैर की संधियां। एक गर्दन की संधि । एक कमर की संधि । मिलाइए, विशुद्धिमग्ग, भाग १, पृ० १६५। सूत्र-१२६ २१. इसका वैकल्पिक अनुवाद इस प्रकार किया जा सकता है—साधक जैसा अन्तस् में वैसा बाहर में, जैसा बाहर में वैसा अन्तस् में रहे। कुछ दार्शनिक अन्तस् की शुद्धि पर बल देते थे और कुछ बाहर की शुद्धि पर । भगवान् एकांगी दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने दोनों को एक साथ देखा और कहा-केवल अन्तस् की शुद्धि पर्याप्त नहीं है । बाहरी व्यवहार भी शुद्ध होना चाहिए। वह अन्तस् का प्रतिफल है। केवल बाहरी व्यवहार का शुद्ध होना भी पर्याप्त नहीं है । अन्तस् की शुद्धि बिना वह कोरा दमन बन जाता है । इसलिए अन्तस् भी शुद्ध होना चाहिए। अन्तस् और बाहर दोनों की शुद्धि ही धार्मिक जीवन की पूर्णता है। सूत्र--१२६,१३० २२. चित्त को कामना से मुक्त करने का चौथा आलम्बन है-शरीर की अशुचिता का दर्शन । एक मिट्टी का घड़ा अशुचि से भरा है। वह अशुचि झर कर बाहर आ रही है। वह भीतर से अपवित्र है और बाहर से भी अपवित्र हो रहा है। यह शरीर-घट भीतर से अशुचि है। इसके निरंतर झरते हुए स्रोतों से बाहरी भाग भी अशुचि हो जाता है। यहां रुधिर है, यहां मांस है, यहां मेद है, यहाँ अस्थि है, यहां मज्जा है, यहां शुक्र है । साधक गहराई में पैठकर इन्हें देखता है। _देहान्तर--अन्तर का अर्थ है-विवर । साधक अन्तरों को देखता है । वह पेट Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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