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________________ लोक-विजय ११५ के अन्तर (नाभि), कान के अन्तर (छेद), दाएं हाथ और पार्श्व के अन्तर तथा बाएं हाथ और पार्श्व के अन्तर, रोम-कूपों तथा अन्य अन्तरों को देखता है। इस अन्तर-दर्शन और विवर-दर्शन से उसे शरीर का वास्तविक रूप ज्ञात हो जाता है। उसकी कामना शांत हो जाती है। ___बौद्ध भिक्षु भी इन अशुभ निमित्तों और आलंबनों का प्रयोग करते थे। देखेंविशुद्धिमग्ग, भाग १, पृ० १६४, १६५। सूत्र-१३४ २३ जो व्यक्ति किंकर्तव्यता (अब यह करना है, अब यह करना है, इस चिन्ता) से आकुल होता है, वह मूढ़ कहलाता है। मूढ़ व्यक्ति सुख का अर्थी होने पर भी दुःख पाता है। वह आकुलतावश शयनकाल में शयन, स्नान-काल में स्नान और भोजन-काल में भोजन नहीं कर पाता सोउसोवणकाले, मज्जणकाले य मज्जिङ लोलो। जेमे च वराओ, जेमणकाले न चाएइ । मढ़ व्यक्ति स्वप्निल जीवन जीता है। वह काल्पनिक समस्याओं में इतना उलझ जाता है कि वास्तविक समस्याओं की ओर ध्यान ही नहीं दे पाता। एक भिखारी था। उसने एक दिन भैस की रखवाली की। भैस के मालिक ने प्रसन्न हो उसे दूध दिया। उसने दूध को जमा दही बना लिया। दही के पात्र को सिर पर रख कर चला । वह चलते-चलते सोचने लगा-'इसे मथकर घी निकालूंगा। उसे बेचकर व्यापार करूंगा। व्यापार में पैसे कमाकर ब्याह करूंगा। फिर लड़का होगा। फिर मैं भैस लाऊंगा। मेरी पत्नी बिलौनी करेगी। मैं उसे पानी लाने का कहूंगा। वह उठेगी नहीं, तब मैं क्रोध में आकर एडी के प्रहार से बिलोने को फोड़ डालूंगा । दही ढुल जाएगा। वह कल्पना में इतना तन्मय हो गया कि उसने ढले हुए दही को साफ करने के लिए अपने सिर पर से कपड़ा खींचा। सिर पर रखा हुआ दही-पात्र गिर गया। उसके स्वप्नों की सृष्टि विलीन हो गई। सूत्र-१३६ २४. काम और भूख-ये दोनों मौलिक मनोवृत्तियां हैं। मनुष्य इनकी सन्तुष्टि के लिए दूसरों पर अधिकार करना चाहता है। भौतिक शास्त्र इनकी सन्तुष्टि का उपाय बतलाता है। अध्यात्मशास्त्र इन्हें सहने की शक्ति के विकास का उपाय बतलाता है। एक अध्यात्मशास्त्री की वाणी में उस उपाय का निर्देश इस प्रकार मिलता है 'शिश्नोवरकृते पार्थ ! पृथिवीं जेतुमिच्छसि । जय शिश्नोवरं पार्थ ! ततस्ते पृथिवी जिता ॥' Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002574
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Aayaro Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages388
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size5 MB
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