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भारतीय वाङमय में योगसाधना और योगबिन्दु
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__ वर्णों तथा आश्रमों के सम्यक् धर्म का पालन करने से ही मोक्ष की उपलब्धि होती है । इस अवस्था में साधक अपनी इन्द्रियों पर संयम भी रखता है जिससे उसकी सारी क्रियाओं का सम्पादन उचित रूप से होता है। यही कारण है कि गहस्थाश्रम में भी धर्म पालन करने से मोक्ष प्राप्ति का विधान किया गया। यौगिक क्रियाओं के अभ्यास के द्वारा इन्द्रियों पर विजय प्रात्त करना यम-नियम एवं अहिंसा आदि क्रियाओं तथा योगाभ्यास से आत्मदर्शनः करना आदि इन प्राचीन स्मतियों में योग सम्बन्धो सभी क्रियाओं का वर्णन मिलता है जिससे मोक्षलाभ होता है। अतः ये स्मृति ग्रन्थ मोक्ष के सोपान हैं।
योगवासिष्ठ
योगवासिष्ठ वैदिक संस्कृति का एक ऐसा प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यतः योग का निरूपण हुआ है तथा उसकी कथाओं, उपदेशों और प्रसंगों आदि से संसार सागर से निवृत्त होने की भी युक्ति बतलायी गयी है।
इसमें मन का विस्तृत वर्णन है। मन को ही शक्तिशाली एवं पुरुषार्थ का सहायक माना गया है। यहां तक कि मन के ही पूर्ण शान्त होने पर ब्रह्मत्व की उपलब्धि होती है। मन को शान्त करने के अनेक उपायों का भी उल्लेख किया गया है। यहां यह बतलाया गया है कि संकल्प करना हो मन का कार्य है। मन ही ऐसा शस्त्र है जिसके द्वारा
१. योगशात्रं प्रवक्ष्यामि संक्षेपात् सारमुत्तमम् ।
यस्य च श्रवणाद् यान्ति मोक्षमेव मुमुक्षवः ।। हारीत स्मति, ८.२ २. प्राणायामेन वचनं प्रत्याहारेण च इन्द्रियम् ।
धारणामिशकृत्वा पूर्वं दुर्धर्षणं मनः ॥ वही ८.४ ३. अरण्यनित्यल्य जितेन्द्रयस्य सवेन्द्रियप्रीतिनिवर्तकस्य ।
अध्यात्मचिन्तागतमानसख्यध्रुवा हयनावृत्तिमवेक्षकस्य ।। वासिष्ठस्मृति, २५८ इज्याचारदमाहिंसादानं स्वाध्यायकर्मणाम् ।
अयं तु परमो धर्मो यद्योगेनात्मदर्शनम् ॥ याज्ञवल्क्य स्मृति, ८ ५. योगवासिष्ठ, ५.८, ६.९
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