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भारतीय वाङमय में योगसाधना और योगबिन्दु तुलना करने तथा उनमें उपलब्ध साम्य को बतलाने का प्रयत्न भी उन्होंने किया है ?। आचार्य हरिभद्रसूरि ने योग की परिभाषा करते हुए बतलाया कि मोक्ष से जोड़ने वाला धर्म व्यापार ही योग है।
इसके बाद आचार्य हेमचन्द्र की अनुपम रचना योगशास्त्र आता है। योगशास्त्र में आचार्य हेमचन्द्र ने योग का स्वरूप प्रतिपादित करते हए कहा है कि योग वह है जो धर्म, अर्थ काम और मोक्ष का कारण हो । इस व्याख्या के अनुसार सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र रूप रत्नत्रय ही योग सिद्ध होता है । इसी रत्नत्रय को आचार्य उमास्वाति ने अपनी प्रसिद्ध रचना तत्त्वार्थाधिगमभाष्य में बहुत पहले ही मोक्ष का मार्ग घोषित किया था। जबकि इस विषय में मुनि मंगलविजय ने आचार्य हरिभद्र का ही अनुसरण किया है ।
इसके अतिरिक्त दिगम्बर परम्परा के महान् आचार्य शुभचन्द्र ने भी ज्ञानार्णव नामक योग ग्रन्थ लिखा है जो योग परम्परा में विशिष्ट स्थान रखता है। आचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र और ज्ञानार्णव में विषय साम्य और शब्द साम्य काफी मिलता है। अतः योग के लक्षण के विषय में इनमें समानता परिलक्षित होना स्वाभाविक है। जैसे आचार्य हेमचन्द्र ने मोक्ष को मुख्य पुरुषार्थ माना है ऐसे ही आचार्य शुभचन्द्र भी मोक्ष को प्रमुख पुरुषार्थ मानते है । अन्तर केवल इतना ही हैं कि आचार्य हेमचन्द्र
१. समाधिरेष एवान्यैः सम्प्रज्ञातोऽभिधीयते ।
सम्यकप्रकर्षरूपेण वृत्यर्थ ज्ञानतस्तथा । असम्प्रज्ञात एषोऽपि समाधिर्गीयते परैः
निरुद्धाशेष वृत्यादि तत्स्वरूपानुवेधतः । योगविन्दु, श्लोक ४१६-२१ २. (क) मुबखेण जोयणाओ, जोगो सव्वो वि धम्मवावारो। योगविशिका,
गा० १ (ख) अध्यात्मभावना ध्यानं समता वृत्तिसंक्षयम् ।
. मोक्षेण योजनात् योगः एष श्रेष्ठो यगोत्तरम् ।। योगबिन्दु, श्लोक ३१ ३. चतुवर्गेऽग्रणी मोक्षो, योगस्तस्य च कारणम् ।
ज्ञानश्रद्धानचारित्ररूपं, रत्नत्रयं च सः ॥ योगशास्त्र, अ० १, श्लोक १५ ४. सम्यग्दर्श नज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । तत्त्वार्थ सूत्र अ० १.१ ५. धर्मव्यापारत्वं योगस्य लक्षणं विदुः । योग प्रदीप २.३
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