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योग : ध्यान और उसके भेद
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क्षुद्र प्राणी आदि हों । वह साधक ऐसे निर्जन स्थान पर चला जाए, जहां किसी भी प्रकार की बाधा की सम्भावना न हो और वह किसी भी जगह दिन अथवा रात्रि में ध्यान करने के लिए बैठ सके ।" यह भी निर्देश है कि ध्यान का आसन सुखदायक होना चाहिए जिससे ध्यान में स्थिरता बनी रहे ।
धर्म ध्यान की विधि
ध्याता पुरुष जब ध्यान करने के लिए उद्यत हो तब उसे इन बातों का भा ध्यान रखना चाहिए
(१) ऐसे आरामप्रद आसन पर बैठे कि जिससे लम्बे समय तक बैठने पर भी मन विचलित न हो ।
(२) दोनों ओंठ मिले हुए हों ।
(३) दोनों नेत्र घ्राण के अग्र भाग पर स्थापित हों ।
(४) दांत इस प्रकार रखें कि ऊपर के दांतों के साथ नीचे के दांतों का स्पर्श न हो ।
(५) मुख मण्डल प्रसन्न हो ।
(६) पूर्व या उत्तर दिशा में मुख हो ।
( ७ ) प्रमाद से रहित हो ।
(८) मेरुदण्ड को सीधा रखकर सुव्यवस्थित आकार से बैठे 14
ध्यान बैठकर, लेटकर अथवा खड़े होकर किसी भी आसन में किया
१. तत्त्वानुशासन, श्लोक ६०-६५
२. कालोऽवि सोच्चि य जाहि जोगसमाहाणमुत्तमं लहइ ।
नउ दिवस निसावेलाइ नियमणं झाइणो भणियं ॥ ध्यानश०, गा० ३८
३. जायते येन येनेह विहितेन स्थिरं मनः ।
तत्तदेव विधातव्यमासनं ध्यानसाधनम् ॥ यो० शा०, ४.१३४
४. सुखासनसमासीनः सुश्लिष्टाधरपल्लवः । नासाग्रन्यस्तदृग्द्वन्द्वोदन्तैर्दन्तान् संस्पृशन् ॥ प्रसन्नवदनः पूर्वाभिः मुखो वाप्युदङ, मुखः ।
अप्रमत्तः सुस्थानो ध्याता ध्यानोद्यतो भवेत् ॥ बही, ४.१३५-१३६
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