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________________ 186 योगबिन्दु के परिप्रेक्ष्य में जैन योग साधना का समीक्षात्मक अध्ययन ध्यान के भेद-प्रभेद विभिन्न जैन आगमों एवं योग विषयक जैन ग्रंथों में ध्यान के प्रमुख चार भेदों का उल्लेख मिलता है वे हैं-आर्त,(२) रौद्र, (३) धर्म्य और (४) शुक्लध्यान । इनमें प्रथम दो ध्यान अप्रशस्त और अन्तिम दो प्रशस्त ध्यान माने गए हैं। अन्तिम दो धर्म्य एवं शुक्ल ध्यान को ही तत्त्वार्थसूत्र में मोक्ष का मूल कारण बतलाया गया है। बाकी तो संसारचक्र से व्यतिरिक्त नहीं हैं। ज्ञानार्णव में ध्यान के तीन भेद-प्रशस्त, अप्रशस्त और शुद्ध बतलाए गए हैं। हेमचन्द्राचार्य ने ध्यान को ध्याता, ध्येय और ध्यान के रूप में विभाजित किया है और ध्येय के चार भेद स्वीकार किए हैं। वे हैं(१) पिण्डस्थ, (२) पदस्थ, (२) स्वरूप और (४) रूपातोत । ध्येय के इन चार भेदों का वर्णन ज्ञानार्णव में भी आता है। रामसेनाचार्य ने ध्येय के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार भेद किए हैं। जो वर्गीकरण की अपनी विशेषता रखता है। इनके अनुसार द्रव्य ध्येय ही १. चत्तारि झाणा पण्णता, तं जहा—अट्ट झाणे, रोदेशाणे, धम्मेझाणे, सुक्के झाणे । स्पानागसूत्र, सूत्र ४, प्रथम उद्देशक तथा । दे समवायांगसुत्र, चतुर्थ समवाय, औपपातिक सूत्रः तपोधिकारा, भगवती सूत्र, शतक २५, उद्देशक ७ अट्टणातिरिक्खगई रुद्दज्झा गेग गम्मती नरयं । धम्मेण देवलोयं सिद्धिगई सुक्कझाणणं ॥ ध्यान शतक, गा० ५ . तया-यच्चतुर्धा मतं तज्ज्ञैः क्षीणमोहैमुनीश्वरेः पूर्वप्रकीर्ण काड्गेषु ध्यानलक्ष्यसविस्तरम् ॥ ज्ञानार्णव, ४.१ आर्त रौद्रधर्म शुक्लानि । त० सू० ६.२६ ३. परे मोक्षहेतू । त० सू० ६.३० ४. संक्षेपरुचिभिः सूत्रात्तन्निरूप्यात्मनिश्चयात् । विधवाभिमतं कैश्चि यतो जीवाशयस्त्रिधा ।। ज्ञानार्णव, ३.२७ ५.. पिण्डस्थं च पदस्पं च रूपस्यं रूपजितम् । चतुर्धा ध्येयमाम्नातं ध्यानस्यालम्बनं बुधैः ॥ योगशास्त्र, ७.८ ६. पिण्डस्थं च पदस्थं च रूपस्थं रूपवजितम् । चतुर्धा ध्यानमाम्नातं भव्यराजीवभास्करैः ॥ ज्ञाना०, ३७.१ ७. नामं च स्थापनं द्रव्यं भावश्चेति चतुर्विधम् ॥ तत्त्वानु०. श्लोक ६६ Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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