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योग : ध्यान और उसके भेद
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विरक्त हो, आसन में स्थिर हो, जितेन्द्रिय हो, क्षोभ रहित हो, शान्त चित्त हो, जिसका मन वश में हो, संवर युक्त हो और धीर हो, इन आठ गुणों में युक्त साधक ही ध्याता, ध्यान करने वाला होता है ।। २. ध्यान
ध्याता का ध्येय में स्थिर होना ही ध्यान है। निश्चय नय से कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण को षट्कारमयी आत्मा कहा गया है, यही ध्यान है। ३. ध्येय .. “जिसका ध्यान किया जाता है वही ध्येय है। ध्यानसाधना के आवश्यक निर्देश
ध्यान की साधना की सफलता के लिए बतलाया गया है कि साधक परिग्रह के त्याग, कषायों का निग्रह, व्रतधारण, मन का संयम और इन्द्रियविजय से युक्त होना चाहिए' कारणकि ध्यान की सिद्धि के लिए योगी को अपने चित्त का दुर्ध्यान, वचन का असंयम और काया की चंचलता का निषेध करना चाहिए तथा समस्त दोषों से मुक्त होकर चित्त को स्थिर बनाना चाहिए। सद्गुरु, सम्यक् श्रद्धान, निरन्तर
१. मुमुक्षर्जन्मनिविण्णः शान्तचित्तो वशी स्थिरः ।
जिताक्षः संवृतो धीरो ध्याता शास्त्रे प्रशस्यते । वही, ४.६ २. ध्यायते येन तद्ध्यानं यो ध्यायति स एव बा।।
यत्र वा ध्यायते यद्वा, ध्याति ध्यानमिष्यते ॥ तत्त्वानु०, श्लोक ६७ स्वात्मानं स्वात्मनि स्वेन ध्यायेत्स्वस्मै स्वतो यतः :
षटकारकामस्तस्माद् ध्यानमात्मैव निश्चयात् ॥ वही, श्लोक ७४ ४. संगत्यागः कषायाणां निग्रहो व्रतधारणम् ।।
मनोऽक्षाणां जयश्चेति सामग्री ध्यानजन्मनो ॥ वही, श्लोक ७५ ५. निरन्ध्याच्चित्तर्दु ध्यानं निरन्ध्यादयतं वचः ।
निरन्ध्यात् कायचापल्यं, तत्त्वतल्लीनमानसः ।। योगसार, श्लोक १६३ ६. मामुज्झह मा रज्जह मादसहइणिट्ठ अट्ठे सु ।
थिरमिच्छहिजइ चित्तं विचत्तझाणपसिद्धीए ॥ वृदद्रव्यसंग्रह, गा० ४८
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