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________________ (xvi) डाला हैं । अतएव इसके लिए निकाय ग्रन्थों का परिशीलन अपरिहार्य है। जैन धार। जैन आगमों में योग शब्द प्रधानरूप से संयोग के अर्थ में व्यवहत हुआ है। जैनाचार्यों ने अनेक ग्रन्थों में इसे ध्यान एवं समाधि के अर्थ में भी प्रयुक्त किया है । मन-वचन-काया का आत्मा के साथ सम्यक् योग मनायाग, वनयोग एवं काय-योग कहे जाते हैं । मन, वचन और काययोग का पूग निरोध ज्ञानाराधक का लक्ष्य है। इनका गोपन करना गप्ति कहलाता है, जो तीन हैं -मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, और कायगुप्ति । जोवन के लिए आवश्य क्रियार्थ सम्यक् रूप से प्रवृत्ति करना समिति कहलाता है, ये पांच हैं-ईया, भासा, एपगा, आया गभंडमत्त निक्श्वेवणा ओर उच्चारसासवग खेल जलमल्ल सिंघाण परिठावणिया समिति 25 यह समिति और गुप्ति साधक जोवन का प्राण है। यही योग का स्वरूप है। आगम तथा नियुक्तियों में योग, ध्यान सम्बन्धी वर्णन यत्र-तत्र आंशिक रूप से उपलब्ध होता है । इन्हें महर्षि पतंजलि रचित योगसूत्र सदश सूत्रबद्व तथा क्रमबद्ध करने का परिणामगामो एवं सफल प्रयास जैनाचार्यों ने भी किया हैं, जिनमें प्रमुखतः आचार्य श्री हरिभद्रसूरि, आचार्य हेमचन्द्र, उपाध्याय यशोविजयजी तथा आचार्य शुभचन्द्र के नाम उल्लेखनीय हैं। आचार्य हरिभद्रसूरि ने योग सम्बन्धी दो प्राकृत में एवं दो संस्कृत में, इस तरह चार महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की है। योगशतक एवं योग विशिका तथा योगबिन्दु एवं योगदृष्टिसमुच्चय । इसके अतिरिक्त संस्कृत में रचित षोडशक प्रकरण में भी योग का वर्णन मिलता है। आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र, आचार्य शुभचन्द्र ने ज्ञानार्णव तथा उपाध्याय यशोविजयजी ने आध्यात्मसार, आध्यात्मोपनिषद् एवं द्वात्रिंशत द्वात्रिंशिकाओं को रचना की है, जिसमें योग सम्बन्धी गहन परन्तु सरल व स्पष्ट विवेचन दृष्टिगत होता है। योगविशिका में हरिभद्रसूरि ने योग के अस्सी भेद बतलाए हैं । सर्वप्रथम योग को पांच प्रकारों में विभक्त किया गया है, जिनमें से प्रथम दो ज्ञानयोग एवं अन्य तीन कर्मयोग स्वरूप हैं । (१) स्थानयोग : वीरासन, पद्मासन, पर्यङ्कासन इत्यादि द्वारा Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002573
Book TitleYogabindu ke Pariprekshya me Yog Sadhna ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvratmuni Shastri
PublisherAatm Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size14 MB
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